मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने एक व्यक्ति को अपने भाई को लीवर टिश्यू (Liver Tissue) डोनेट करने की रजामंदी दी है. भाई को लीवर टिश्यू देने पर उसकी पत्नी ने आपत्ति (Wife's objection) जताई थी. याचिकाकर्ता (Petitioner) ने कहा कि वह लीवर ट्रांसप्लांट (Liver Transplant) के लिए फिट है और डॉक्टर ने इसके लिए रजामंदी भी दे दी. लेकिन ट्रांसप्लांट के लिए पत्नी से इजाजत नहीं मिली. याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने इस विषय पर कहा कि अस्पताल के सहमति पत्र (Consent Form) पर पत्नी की जगह घर के अन्य सदस्य लें सकते हैं.
जस्टिस राज मोहन सिंह ने इस याचिका पर सुनवाई की. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है. उसे अपने फैसले को बदलने के लिए किसी के द्वारा बाध्य नहीं किया जा सकता, चाहे वह उसकी पत्नी ही क्यों ना हो. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि आज के दौर में अंग दान (organ donation) की प्रक्रिया सफलतापूर्वक हो रही है. इसलिए व्यक्ति के पत्नी की आपत्ति को भाई के जीवन के ऊपर नहीं देखा जा सकता. पत्नी ने अपने पति के स्वास्थ्य को लेकर उसे ट्रांस्पलांट की इजाजत नहीं दी. कोर्ट ने परमादेश (Mandamus) जारी कर पत्नी के आपत्ति जताने वाले फैसले को अमान्य किया. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता अपने भाई को लीवर टिश्यू दे सकते है. वे जल्द से जल्द इसे करें ताकि किसी तरह की गड़बड़ी नहीं हो.
जब 33 वर्षीय विकास अग्रवाल अपने भाई को लीवर डोनेट करने कोकिलबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पीटल एंड मेडिकल रिसर्ट इंस्टीट्यूट गए. अस्पताल वालों ने उन्हें लीवर ट्रांसप्लांट करने से मना कर दिया. कारण बताते हुए कहा कि उनकी पत्नी ने ऐसा करने पर आपत्ति जताई है. पत्नी के आपत्ति जताने पर विवेक अग्रवाल (याचिकाकर्ता) ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का रूख किया. अपने याचिका में कहा कि उसके भाई की स्वास्थ्य हालत बहुत खराब है और उसने खुद ही उसे लीवर टिश्यू देने का निर्णय लिया. लेकिन पत्नी के आपत्ति जताने पर वह ऐसा नहीं कर पाया.