,नई दिल्ली, केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा हाल ही में कॉलेजियम सिस्टम को लेकर दिए गए बयान पर पूर्व मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ने जवाब दिया है.पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि केंद्रीय कानून मंत्री द्वारा कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ की गई हालिया टिप्पणियों को केवल उनकी व्यक्तिगत राय के रूप में देखा जा सकता हैं.
पूर्व मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित रविवार को नई दिल्ली स्थित अपने निवास पर मीडिया से बातचीत कर रहे थे. इस दौरान उन्होने खुलकर कॉलेजियम सिस्टम से लेकर देश की न्यायपालिका से जुड़े कई अहम बिंदुओं पर अपनी बात रखी. पूर्व मुख्य न्यायाधीश देश की न्यायपालिका के मौजूद कॉलेजियम सिस्टम को लेकर भी अहम बयान दिया हैं. पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि देश के हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली एक फुलप्रूफ प्रणाली है. जिसे सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच के द्वारा मंजूरी दी गई हैं.
जस्टिस ललित ने कहा कि कॉलेजियम सिस्टम एक स्थापित मानदंड है जो कि पूर्णतया सुरक्षित हैं क्योंकि एक जज का चयन करने वाले जज अक्सर दूसरे राज्य से होते है, जो कॉलेजियम द्वारा किसी भी जज की नियुक्ति से पूर्व पूर्ण जांच करते है. जिसके बाद आईबी की रिपोर्ट के जरिए सरकार जांच करती है और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम इसे देखता है. इसलिए इस सिस्टम में पर्याप्त रूप से चेक एंड बैलेंस हैं. इसलिए ये सिस्टम जारी रहने वाला हैं.
पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कॉलेजियम के सभी जजों के पास एक इनपुट होता है. यही वजह है कि हम सीजेआई रमन्ना के कार्यकाल में इसी सिस्टम के जरिए 250 जजों की नियुक्ति कर पाए हैं. आंकड़े खुद ही अपनी कहानी कहते हैं.
पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कॉलेजियम प्रणाली को "सर्वश्रेष्ठ प्रणाली" कहते हुए कहा कि देश में न्यायपालिका की स्वतंत्रता और कानून के शासन के लिए कॉलेजियम प्रणाली अपरिहार्य है और इसे जारी रखा जाना चाहिए.
जस्टिस ललित ने यह भी कहा कि अगर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग ऐसा करने का फैसला करता है तो यह सरकार का विशेषाधिकार होगा. लेकिन जब तक इसे लागू नहीं किया जाता हमें स्थापित तंत्र का पालन करना होगा."
सोशल मीडिया पर जजों पर बढ़ते हमले को लेकर पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि किसी भी मामले पर फैसले से पूर्व एक जज के सामने कई सवाल होते हैं, उन सवालों के जवाब जानने के लिए जज को 0 से 100 तक की यात्रा करनी होती हैं. कई बार जज कई बिंदुओं पर स्पष्ट नहीं होते, ऐसे में जवाब पाने के लिए वकीलों से लगातार सवाल पूछते है और उन पर अपनी टिप्पणियां भी करते हैं. लेकिन यही टिप्पणियां जो निर्णय लेने से पहले के सवाल जवाब होते हैं, लेकिन सोशल मीडिया इस तरह की टिप्पणियों को उठाता हैं. सोशल मीडिया जो रिपोर्ट करता है उसके लिए उसे भी जिम्मेदार होना चाहिए.
पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने देश की अदालतों में महिला जजों के प्रतिनिधित्व को लेकर भी राजस्थान की तारीफ की है. पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि महिलाओं को भी जजों के मामले में उचित प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए. राजस्थान में इंडक्शन ट्रेनिंग के दौरान 126 में से 118 महिलाएं मौजूद रही.
पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने जीएन साईबाबा मामले की सुनवाई अवकाश के बावजूद शनिवार अलग बेंच गठित कर करने का पक्ष लिया हैं. उन्होने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष 15 अक्टूबर, शनिवार को इस मामले को सूचीबद्ध करने में कुछ भी असामान्य नहीं है.
पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट आमतौर पर शनिवार को मामलों की सुनवाई नहीं करता है, और इस मामले में उन्होने जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़ से भी पूछा था. उन्होने कहा जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ द्वारा इस मामले में 14 अक्टूबर, शुक्रवार को मामले को शनिवार को सूचीबद्ध करने के खिलाफ की गई प्रतिकूल टिप्पणी उनकी जानकारी में नहीं थी.