वाक्या कुछ यूं है कि एक लॉ की पढ़ाई करने वाली मुस्लिम महिला ने केरल के वित्त मंत्री पूर्व राज्य वित्त मंत्री टीएम थॉमस इस्साक से हाथ मिलाया था. उसके हाथ मिलाने की बात को एडल्ट्री व शरीयत का उल्लंघन बताते हुए कुछ लोगों ने दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया. इसके बाद सोशल मीडिया पर छात्रा के खिलाफ पोस्ट पर पोस्ट शेयर किए जाने लगे. तंग आकर छात्रा ने नौशाद नामक व्यक्ति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई, इस FIR को रद्द करने की मांग को लेकर नौशाद ने केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर की है. आइये जानते हैं कि केरल हाईकोर्ट ने क्या कहा...
केरल हाईकोर्ट में जस्टिस पी.वी. कुन्हिकृष्णन ने व्यक्ति को किसी प्रकार का राहत देने से इंकार कर दिया है. उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इंकार करते हुए केरल हाईकोर्ट ने कहा कि छात्रा का हाथ मिलाना उसका व्यक्तिगत फैसला था, उससे किसी अन्य को आपत्ति जताने का हक नहीं है, साथ ही उसे किसी तरह धार्मिक मान्यताओं को पालन करने के लिए जबरदस्ती दवाब नहीं बनाया जा सकता है.
अदालत ने कहा,
"धार्मिक विश्वास को मानने में कोई जबरदस्ती नहीं की जा सकती, खासकर इस्लाम में. यह व्यक्तिगत होते हैं. कोई भी, दूसरा व्यक्ति किसी अपना धार्मिक आचरण का पालन करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है."
केरल हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता (आरोपी) व्यक्ति के खिलाफ FIR रद्द करने से इंकार कर दिया है. इस दौरान अदालत ने मुस्लिम छात्रा के हिम्मत की दाद भी दी.
अदालत ने कहा,
"एक युवा मुस्लिम लड़की बहादुरी से आगे आकर कहती है कि यह उसकी धार्मिक आस्था की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन है. इन स्थितियों में, हमारा संविधान उसके हितों की रक्षा करेगा."
अदालत ने छात्रा की बहादुरी की तारीफ की.
केरल हाईकोर्ट ने इस दौरान धर्म के प्रचार-प्रसार के अधिकार का भी जिक्र किया है. अदालत ने व्यक्ति को साफ शब्दों में कहा कि धर्म के प्रचार-प्रसार का अर्थ जबरदस्ती किसी पर धार्मिक मान्यताओं को थोपना नहीं है.
कॉलेज में एक समारोह के दौरान लॉ की एक मुस्लिम छात्रा ने राज्य के वित्त मंत्री से उपहार लेते हुए उनसे हाथ मिलाया था, जिसे लेकर कुछ लोगोंने भ्रम फैलाया कि ये धार्मिक भावनाओं व शरीयत कानून का उल्लंघन है. लड़की के खिलाफ सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया है. इसके बाद छात्रा ने आरोपी के खिलाफ शकायत दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया कि उसे और उसके परिवार को अपमानित किया गया है. पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 153 (दंगा भड़काने के इरादे से उकसाना) और केरल पुलिस अधिनियम की धारा 119 (ए) (महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाना) के तहत मामला दर्ज किया था. आरोपी नौशाद ने इसी मामले को रद्द कराने को लेकर केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे मानने से केरल हाईकोर्ट ने इंकार कर दिया है.