DNA टेस्ट की मांग से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक वैध विवाह के दौरान जन्मा बच्चा कपल का ही संतान कहा जाएगा, भले ही महिला पर अवैध संबंध बनाने के आरोप लगे हों. शीर्ष अदालत ने कहा कि महिला पर व्याभिचार (Adultery) के आरोप लगाना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि पति को यह भी सिद्ध करना होगा कि उस समय अंतराल में उसने पत्नी से संबंध नहीं बनाया था. बर्थ सर्टिफिकेट पर नाम बदलवाने से शुरू हुआ मामला डीएनए टेस्ट तक पहुंचा, जिसमें महिला ने विवाहेत्तर संबंध का दावा करते हुए गुजारा भत्ता की भी मांग की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दूसरे व्यक्ति को थर्ड पार्टी मानते हुए उसे डीएनए टेस्ट कराने व गुजारा भत्ता की मांग के आदेश देने से इंकार किया है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने DNA टेस्ट कराने की इजाजत देने की मांग से जु़डी याचिका को सुना. अदालत ने कहा कि किसी बच्चे की वैधता उसके पिता की पहचान को निर्धारित करती है, भले ही महिला पर विवाहेतर संबंध बनाने का दावा किया गया हो. अदालत ने कहा कि यदि कोई बच्चा वैध विवाह के दौरान पैदा होता है, तो उसे स्वाभाविक रूप से उसके माता-पिता का वैध संतान माना जाएगा. सर्वोच्च न्यायालय ने यह तर्क खारिज कर दिया कि वैधता और पितृत्व अलग-अलग अवधारणाएं हैं. अदालत ने कहा कि वैधता और पितृत्व एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, क्योंकि एक बच्चे की वैधता सीधे तौर पर पितृत्व को स्थापित करती है. यदि यह साबित होता है कि विवाहित जोड़े के बीच बच्चे के गर्भाधारण के समय संपर्क था, तो उस बच्चे को वैध माना जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट ने वैध विवाह के दौरान महिला द्वारा बनाए गए संबंध के आरोप को किसी थर्ड पार्टी को DNA टेस्ट कराने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है, जब तक कि पार्टी द्वारा यह साबित नहीं कर दिया जाए कि उस समय पति-पत्नी एक-दूसरे के संपर्क में नहीं थे. इस मामले में ऐसा नहीं है, अपीलकर्ता द्वारा यह साबित नहीं किया गया है उसके माता-पिता एक-दूसरे से अलग थे.
इस मामले में दंपत्ति की शादी 1989 में हुई थी. महिला को साल 1991 में एक बेटी हुई. वहीं 2001 में महिला को एक बेटा हुआ. नगरनिगम वालों ने पिछले रिकॉर्ड के हिसाब से सर्टिफिकेट पर पहले पति का नाम ही लिख दिया. 2003 से महिला और उसके पति अलग रहने लगे, और 2006 में उनका तलाक हो गया. DNA परीक्षण की मांग तब उठी, जब तलाक के बाद महिला ने अपने बेटे के उपनाम को बदलने के लिए नगरपालिका में आवेदन किया. कारण बताया कि बर्थ सर्टिफिकेट पर पिता का नाम गलत है, बच्चा उसके एक्सट्रा मेरिटल अफेयर से हुआ है. नगरपालिका की से महिला को जबाव मिला कि बिना अदालत के आदेश के बिना बच्चे के नाम में किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया जाएगा. मामला केरल की एक जिला अदालत में पहुंचा. महिला ने दावा किया कि बच्चे का पिता वही व्यक्ति है. जैविक पिता यानि दूसरे व्यक्ति ने महिला की बातों को झुठला दिया. तब बेटे और महिला ने DNA टेस्ट कराने की मांग की. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा.