नई दिल्ली: Kerala High Court ने एक महत्वपूर्ण फैसले में बच्चों के गैर-चिकित्सीय खतने की प्रथा संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध के रूप में घोषित करने की मांग करने वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया है.
Chief Justice S Manikumar और Justice Murali Purushothamanकी पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अदालत कानून बनाने वाली संस्था नहीं हैं.
नॉन रिलिजियस नामक एक संगठन की ओर से दायर याचिका में लड़कों के खतना प्रथा पर रोक लगाने के लिए कानून बनाने पर विचार करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया था.
याचिका में गैर-चिकित्सीय खतने की प्रथा को अवैध घोषित करने की मांग करते हुए कहा गया कि खतना की प्रथा एक 'क्रूर' और 'अवैज्ञानिक प्रथा' है, जिसके शिकार अक्सर बच्चे होते हैं.
याचिका में इसे मानवाधिकार का उल्लंघन बताते हुए दावा किया गया कि इस तरह की प्रथा संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है और इसलिए अदालत इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए बाध्य है.
याचिका में इस आधार पर खतने की धार्मिक प्रथा पर प्रतिबंध लगाने की मांग करती है कि इससे बच्चों में रक्तस्राव, संक्रमण, निशान सहित कई स्वास्थ्य जोखिम पैदा होते हैं.
याचिका में यह भी कहा गया है कि इस तरह की प्रथा एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है क्योंकि यदि इस प्रथा को समाप्त कर दिया जाता है तो धर्म की प्रकृति में बदलाव नहीं आएगा.
खतना पुरुष जननांग के आगे के हिस्से की ऊपरी त्वचा को चिकित्सकीय तरीके से हटाने की प्रक्रिया है. जन्म के तुरंत बाद लड़के का खतना करना कुछ धर्मों में एक प्राचीन प्रथा है.
खतना या सुन्नत यहूदियों और मुसलमानों में एक धार्मिक संस्कार होता है. इसमें लड़का पैदा होने के कुछ समय बाद उनके लिंग के आगे की चमड़ी निकाल दी जाती है.
वैसे तो इसका संबंध किसी खास धर्म, जातीय समूह या जनजाति से हो सकता है, लेकिन कई बार माता-पिता अपने बच्चों का खतना, साफ-सफाई या स्वास्थ्य कारणों से भी कराते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दुनिया भर में करीब 30 प्रतिशत पुरुषों का खतना हुआ है. कुछ समुदायों जैसे कि यहूदियों और मुसलमानों के लगभग सभी पुरुषों का खतना किया जाता है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि खतना किए गए पुरुषों में संक्रमण का जोखिम कम होता है क्योंकि लिंग की आगे की चमड़ी के बिना कीटाणुओं के पनपने के लिए नमी का वातावरण नहीं मिलता है.
एचआईवी की रोकथाम के लिए अफ़्रीका के कई देशों में पुरूषों में खतना करवाने के तौर पर बढ़ावा दिया जाता रहा है.
लेकिन बच्चो के मामले में हमेंशा ही इसका विरोध किया जाता रहा है. बहुत से लोगों का मानना है कि यह एक हिंसक कृत्य है और शरीर के लिए नुकसानदायक है.
जनवरी 2012 में जर्मनी के कोलोन शहर की जिला अदालत ने अपने एक फैसले में कहा है कि धार्मिक आधार पर शिशुओं का खतना करना उनके शरीर को कष्टकारी नुकसान पहुंचाने के बराबर है.
हालांकि कोलोन की अदालत का ये फैसला पूरे जर्मनी पर लागू नहीं होता था, इसके बावजूद इस फैसले का बड़े स्तर पर विरोध किया गया था.
कई यूरोपीय मुस्लिम और यहूदी संगठनों ने साझा बयान जारी कर कहा है कि खतना उनकी धार्मिक श्रद्धाओं का आधार है और इसे कानूनी रूप से संरक्षण दिया जाना चाहिए.
इसराइल की संसद ने भी इस फैसले का विरोध किया है.