नई दिल्ली: कर्नाटक उच्च न्यायालय (Karnataka High Court) में एक मामला आया जिसमें दो बेटों ने एक याचिका दायर की थी जिसमें उन्होंने अदालत से अनुरोध किया है कि उनकी 84-वर्षीय मां को जो वो 'माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण तथा कल्याण अधिनियम 2007' (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007) के तहत गुजारा भत्ता (Maintenance Allowance) देते हैं, उसकी कीमत 10 हजार रुपये से कम कर दी जाए क्योंकि उनके हिसाब से यह कीमत उनके लिए बहुत ज्यादा है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश कृष्ण एस दीक्षित (Justice Krishna S Dixit) की एकल पीठ ने इस याचिका को रद्द कर दिया है और साथ में यह भी कहा है कि आज के समय में दस हजार रुपये किसी के शरीर और आत्मा को एक साथ रखने के लिए भी काफी नहीं हैं।
कर्नाटक उच्च न्यायालय के जस्टिस दीक्षित ने याचिका को खारिज कर दिया और ऑर्डर में यह लिखा गया कि आज के युग में रोटी खून से भी महंगी है और पैसा अपनी क्रय शक्ति खो रहा है। ऑर्डर में कोर्ट ने यह भी कहा है कि दस हजार रुपये किसी भी हाल में 'ज्यादा' नहीं माने जा सकते हैं बल्कि इससे ज्यादा राशि तो किसी के शरीर और आत्मा को एक साथ रखने के लिए चाहिए होती है।
इतना ही नहीं, याचिका को खारिज करने के बाद जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित ने बहुत मुश्किल से खुद को इस गुजारा भत्ता की राशि को बढ़ाने से रोका; यह भी इसलिए क्योंकि याचिकाकर्ताओं की मां ने कोर्ट से अनुरोध किया कि वो ऐसा न करें।
इस याचिका को अदालत ने खारिज तो किया ही, साथ ही, याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि वो गुजारा भत्ता के अलावा भी पांच हजार रुपये अपनी मां को भेजें।
इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस दीक्षित ने यह कहा है कि अदालत को इस बात का बहुत दुख है कि आज के समय में, युवा पीढ़ी का एक हिस्सा अपने वृद्ध और बीमार माता-पिता की देखभाल नहीं कर पा रहा है और उससे पीछे भाग रहा है; ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है। यह कोई अच्छी बात, कोई सुखद विकास नहीं है।
जस्टिस दीक्षित ने यह भी कहा कि हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार यदि एक व्यक्ति अपने वृद्ध माता-पिता का तब ध्यान नहीं रखता जब वो कमजोर और निर्भर हो जाते हैं, तो वो एक ऐसी जघन्य हरकत होती है जिसका प्रायश्चित नहीं किया जा सकता।