भारत माता की जय और वंदे मातरम बोलने को लेकर सोशल मीडिया पर रोज ही नया शगल छिड़ जाता है. कुछ लोग उकसाने पर नहीं बोलना चाहते, तो कुछ जना इसके उद्घोष को देशभक्ति का प्रमाण मानते हैं और उच्चारण में गर्व हो भी क्यों ना! हमने बहुत त्याग, बलिदान और संघर्ष से इस गौरव को हासिल किया है. अब तो कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी फैसला सुनाया है कि भारत माता की जय का नारा समाज में सद्भाव बढ़ाता है ना कि इससे समाज में वैमनस्य फैलता है. कर्नाटक हाईकोर्ट ने पांच लोगों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी (FIR) को रद्द करते हुए ये बातें कहीं. यह एफआईआर (FIR) आईपीसी की धारा 153ए के तहत की गई थी, जो अलग-अलग धर्मों व समुदायो में वैमनस्यता फैलाने से जुड़ा है.
कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस एम. नागप्रसन्ना ने इस मामले को धारा-153ए का दुरूपयोग बताया. जस्टिस ने सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि यह मामा आईपीसी की धारा153ए के दुरूपयोग का अच्छा उदाहरण है.
अदालत ने मामले को बरकरार रखने से आपत्ति जताते हुए कहा कि ऐसा करना भारत माता की जय के नारे के खिलाफ जांच के आदेश देना होगा. जबकि यह नारा किसी भी रूप में समाज में किसी तरह की वैमनस्यता को बढ़ावा नहीं देनेवाला नहीं माना जा सकता है.
कर्नाटक हाईकोर्ट ने पांच याचिकाकर्ताओं को राहत देते हुए उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का निर्देश दिया है.
मामला नौ जून का है जब पांच लोग हरीश, नंद कुमार, सुभाष और किशन कुमार (याचिकाकर्ता) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली से लौट रहे थे, तब वे दक्षिण कन्नड़ जिले की उल्लाल तालुका में बोलीयार ग्राम के समादान बार पहुंचे, जहां कुछ ने उनपर हमला कर दिया, हमलावर बार-बार दावा कर रहे थे कि इन पांचों ने भारत माता की जय कैसे कह दिया. अगले दिन सुबह अब्दुल्ला नामक आदमी ने इन पांचो के खिलाफ शिकायत दर्ज कराते हुए आरोप लगाया कि इन लोगों ने देश छोड़ने की धमकी दी है.