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हिरासत से भागे हुए अपराधी को बचाने या शरण देने पर होती है जेल की सजा, जानिए कानून

अपराध करना अगर गुनाह है तो अपराधी को छुपाना, अपराध करने में किसी की मदद करना या अपराधी को अपने पास रखना भी कानूनी रूप से दंडनीय है.

हिरासत से भागे हुए अपराधी को बचाने या शरण देने पर होती है जेल की सजा, जानिए कानून

Written by My Lord Team |Published : January 13, 2023 9:58 AM IST

नई दिल्ली: हमारे देश के कानून के अनुसार अपराध को हतो​त्साहित किया जाने के लिए कई प्रावधान किए है. ऐसा ही एक प्रावधान किसी अपराध के लिए गिरफ्तार किए गए अपराधी या आरोपी को हिरासत से भागने के बाद शरण देने के मामले में भी है.

कानून के अनुसार हिरासत से भागे हुए अपराधी या आरोपी जिसको हिरासत में लेने का आदेश पारित किया गया है, ऐसे व्यक्ति को शरण देने या छुपाने पर के लिए सहयोग करने वाले व्यक्ति को भी जेल की सजा का प्रावधान किया गया है.

यदि आप किसी व्यक्ति को यह जानते हुए कि उसने कोई अपराध किया है फिर भी शरण देते हैं या छुपाते हैं तो आपको दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.

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IPC की धारा 216

भारतीय दंड सहिंता की धारा 216 के के अनुसार यदि कोई व्यक्ति हिरासत से भागे हुए व्यक्ति या किसी आरोपी जिसके खिलाफ एक लोक सेवक द्वारा गिरफ्तारी का आदेश पारित किया गया है, और वह जानता है कि वह व्यक्ति किसी अपराध का दोषी पाया गया था या ऐसे गिरफ्तारी के आदेश के बारे में जानता है और फिर भी ऐसे अपराधी या आरोपी को शरण देता है या छुपाता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है.

आरोपी जिसे बचाने की कोशिश की जा रही है, उसके द्वारा अंजाम दिए गए अपराध को ध्यान में रखते हुए धारा 216 के तहत दी जाने वाली सज़ा को 3 भाग में बांटा गया है.

यदि अपराध मृत्यु से दंडनीय हो: इस स्थिति  में जो व्यक्ति आरोपी को बचाने के लिए उसे शरण देता या छुपाता है तो उसे 7 वर्ष के कारावास के साथ-साथ जुर्माने की सज़ा हो सकती है.

अपराध आजीवन कारावास या 10 वर्ष से अधिक के कारावास से दंडनीय हो: इस स्थिति में जो व्यक्ति आरोपी को बचाने के लिए उसे शरण देता या छुपाता है तो उसे 3 वर्ष के जेल के साथ-साथ जुर्माने की सज़ा हो सकती है.

अपराध दस वर्ष से कम के कारावास से दंडनीय हो: इस स्थिति में जो व्यक्ति आरोपी को बचाने के लिए उसे शरण देता या छुपाता है तो उसे अपराध के लिए उपबंधित कारावास की अवधि की एक-चौथाई अवधि के कारावास या जुर्माने या दोनों की सज़ा हो सकती है.

IPC की धारा 216-ए

IPC की धारा 216-ए के अनुसार जो कोई व्यक्ति यह जानते हुए कि कुछ लोग डकैती या लूट को अंजाम देने वाले हैं या उन्होंने डकैती या लूट को अंजाम दिया और उनकी अपराध में मदद करने के उद्देश्य से या उनको सज़ा से बचाने के इरादे से शरण देता है या छुपाता है तो ऐसे व्यक्ति को कानूनी कार्यवाही का सामना करना पड़ सकता है.

धारा 216-ए के अंतर्गत दोषी पाए जाने पर व्यक्ति को 7 वर्ष के कारावास और जुर्माने की सज़ा का प्रावधान है.

पति या पत्नी को क्यों है छूट

IPC की धारा 216 और 216-ए में एक अपवाद (Exception) भी शामिल किया गया है, जिसके अनुसार यह प्रावधान किसी भी ऐसे मामले में लागू नहीं हो सकते हैं, जिसमें अपराधी के पति या पत्नी द्वारा उसे शरण दी गई है या छिपाया गया है.

अर्थात हिरासत से भागकर अगर कोई अपराधी या आरोपी अपने घर पति या पत्नी की शरण में आता है और वो उसे बचाता है तो ऐसी स्थिती में शरण देने वाले पति या पत्नी पर यह कानून सख्त नही होता है.

जमानती अपराध

IPC की 216 और धारा 216-ए, दोनों ही जमानती और संज्ञेय अपराध है जिसमें अपराधी को बिना वारंट (Warrant) के गिरफ्तार किया जा सकता है. इन अपराधों में समझौता भी नहीं किया जा सकता है.