78वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में ध्वजारोहण किया. उसके बाद एक कार्यक्रम में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ में शामिल होते हुए कहा कि यह वो दिन है जो हमें संविधान के मूल्यों को जीवंत रखने में एक-दूसरे व राज्य के प्रति हमारे कर्तव्यों का पालन करने की याद दिलाता है. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आयोजित एक कार्यक्रम में सीजेआई ने कहा कि 1950 में हमने अपने लिए स्वतंत्रता के विकल्प को चुना था. स्वतंतत्रता और कर्तव्य दोनों ही हमारे लिए बहुत जरूरी है, बंग्लादेश में जो रहा है, हमें इन दोनों की अहमियत का एहसास दिलाता है.
आगे बढ़ने से पहले, पाठकों को बता दूं कि स्वतंत्रता आपको किसी काम को करने की इजाजत देती है. वहीं, देश और लोगों के प्रति हमारे कर्तव्य इस बात का ख्याल रखने को कहती है कि हम स्वतंत्रता के विकल्प के सहारे उच्छश्रृंखल ना हो जाए, जो अंतत हमें ही नुकसान पहुंचाती है.
कार्यक्रम में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने आजादी के महत्व को बताया. सीजेआई ने कहा कि आजा और उसे पाने के लिए देश कठिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ा है.
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने आगे कहा,
इस दिन हम उन लोगों की प्रतिबद्धता का सम्मान करते हैं जो इस जीवन को महान बनाने के लिए जीते हैं और जो इसे महान बनाने के लिए काम कर रहे हैं. हम सभी औपनिवेशिक युग की पृष्ठभूमि में संविधान के बारे में बात करते हैं और हमारे देश ने क्या झेला है.
आज सुबह मैं कर्नाटक की प्रसिद्ध गायिका चित्रा श्री कृष्ण द्वारा लिखी गई एक सुंदर रचना पढ़ रहा था और इस रचना का शीर्षक है स्वतंत्रता के गीत (SongsOf Freedom). स्वतंत्रता का विचार भारतीय कविता के ताने-बाने में बुना हुआ है. हमने 1950 में स्वतंत्रता की विकल्प को चुना, और आज जो कुछ हो रहा है, जैसे कि बांग्लादेश में, वह स्पष्ट रूप से याद दिलाता है कि स्वतंत्रता हमारे लिए कितनी कीमती है. स्वतंत्रता और स्वतंत्रता को हल्के में लेना बहुत आसान है, लेकिन हमें याद दिलाने के लिए अतीत की कहानियों को समझना महत्वपूर्ण है कि ये चीजें कितनी महत्वपूर्ण हैं,
सीजेआई चंद्रचूड़ ने आगे स्वतंत्रता सेनानियों का उल्लेख किया जिन्होंने अपनी कानूनी प्रैक्टिस छोड़ दी और संघर्ष में शामिल हो गए.
उन्होंने कहा,
कई वकीलों ने अपनी कानूनी प्रैक्टिस छोड़ दी और खुद को राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया. बाबासाहेब अंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू, अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर, गोविंद वल्लभ पंत, देवी प्रसाद खेतान, सर सैयद मोहम्मद सादुल्लाह जैसे कई अन्य लोग. वे न केवल भारत के लिए स्वतंत्रता प्राप्त करने में सहायक थे, बल्कि एक स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना में भी सहायक थे.
पिछले 24 वर्षों से एक न्यायाधीश के रूप में, मैं अपने दिल पर हाथ रखकर कह सकता हूँ कि अदालतों का काम आम भारतीयों के संघर्षों को दर्शाता है जो अपने दैनिक जीवन की कठिनाइयों से जूझ रहे हैं. भारत के सर्वोच्च न्यायालय में न्याय की मांग लेकर सभी क्षेत्रों, जातियों, लिंगों और धर्मों के गांवों और महानगरों से वादियों की भीड़ आती है. उन वादियों को न्याय दिलाने में लीगल कम्युनिटी अदालत की मदद करती हैं.