नई दिल्ली: हमारे देश में लोक सेवक को जितनी सुविधाएं दी जाती है, उसी तरह उनके साथ कर्तव्य भी होते है. एक लोकसेवक से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने कर्तव्य को पूरी ईमानदारी और निष्ठा से निभाएंगे. लेकिन ऐसे भी मामले देखने को मिलते हैं, जिनमें पुलिस अधिकारी अपने कर्तव्यों का निर्वहन जिम्मेदारी से नहीं करते हैं, जिसके कारण आरोपी कारावास या पुलिस की हिरासत से फरार हो जाते हैं.
लोक सेवकों के खिलाफ IPC में, सज़ा के सख्त प्रावधान इसलिए भी बनाए गए हैं। इसी संबंध में भारतीय दंड सहिंता की धारा 223, ऐसे लोक सेवक को दंडित करने का प्रावधान बनाती है, जिसकी लापरवाही के चलते कोई व्यक्ति पुलिस की कैद या हिरासत से भाग जाता है.
IPC की धारा 223 के अनुसार जो कोई लोक सेवक किसी अन्य व्यक्ति को किसी कथित अपराध के चलते या किसी सज़ा के चलते या कानूनी तौर पर कारावास में रखने के लिए बाध्य है, लेकिन वह लोक सेवक अपनी लापरवाही के चलते, उस व्यक्ति को भागने देता है, तो उस लोक सेवक के खिलाफ कार्यवाही की जा सकती है.
ऐसे मामलो में अभियोजन (Prosecution) यानी सरकारी पक्ष को यह स्थापित करना अनिवार्य होगा कि लोक सेवक कानूनी रूप या सज़ा के चलते उस व्यक्ति को कारावास में रखने के लिए बाध्य था, और ऐसा व्यक्ति केवल लोक सेवक की लापरवाही के चलते हिरासत या भाग पाया है. लापरवाही और भागने के बीच में स्वाभाविक रूप से एक संबंध साबित करना ही पड़ेगा अन्यथा लोक सेवक को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.
यदि किसी व्यक्ति को केवल सिविल प्रक्रिया के तहत गिरफ्तार किया गया है और वह हिरासत से भाग जाता है, तो ऐसी स्थिती में यह धारा लागू नहीं होगी क्योंकि वह किसी अपराध के लिए हिरासत में नहीं है या कानूनी तौर पर हिरासत में नहीं है.
IPC की धारा 223 के अनुसार जब एक लोकसेवक को लापरवाही दोषी पाया जाता है तो उसे 2 साल की जेल की सजा से लेकर जुर्माने या दोनों की सज़ा हो सकती है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 223 के अंतर्गत किया गया अपराध, एक जमानती और असंज्ञेय अपराध है. यानी पराधी को बिना वारंट (Warrant) के गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है. इस अपराध में समझौता नहीं किया जा सकता हैं.