हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने चार्जशीट भरने को लेकर अहम टिप्पणी की हैं. सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि चार्जशीट (Chargesheet) कैसे भरी जाए, उसे पूरा करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखा जाए. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी बताया कि चार्जशीट में एविडेंश की प्रकृति और स्टैंडर्ड (Evidence's Nature And Standard) ऐसे बताएं कि कम से कम घटना का पता चले, एविंडेंस सही होने पर अपराध भी साबित हो सकें. बता दें कि यह विवाद दो पक्षो के बीच दिल्ली में एक संपत्ति पर अधिकार करने से जुड़ा है. दिल्ली की संपत्ति को अपना-अपना हक जताने को लेकर ये FIR उत्तर प्रदेश राज्य में दर्ज की गई है. इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चार्जशीट फाइल करने को लेकर अहम निर्देश दिए हैं.
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने इस मामले को सुना. बेंच ने चार्जशीट पूरा करने को लेकर कहा कि ये किसी पक्ष को लेकर पूर्वाग्रह से प्रेरित नहीं होना चाहिए.
बेंच ने कहा,
"चार्जशीट में बताए गए एविंडेंस का नेचर और स्टैंडर्ड ऐसा हो कि अगर एविडेंस सिद्ध हों, तो अपराध स्थापित हो जाए."
बेंच ने ये भी कहा,
"चार्जशीट को तब पूरा मान लिया जाना चाहिए जब केस को सुनवाई के लिए किसी अन्य एविडेंस की जरूरत ना हो. ट्रायल अदालत के रिकार्ड पर रखे चार्जशीट और सबूत के आधार पर आगे की सुनवाई शुरू हो सके."
बेंच ने समझाया,
ये स्टैंडर्ड भले ही टेक्नीकल और फूल-प्रूफ नहीं हो लेकिन एक आदर्श प्रयास है कि किसी निर्दोष को बेवजह परेशानी से बचा सकता है."
बेंच ने चार्जशीट के सभी कॉलम भरे जाने की बात कहीं जिससे ये स्पष्ट पता चले कि किस आरोपी ने कौन सा अपराध किया है. बेंच ने केस से जुड़े लोगों के बयान दर्ज करने के निर्देश दिए हैं.
बेंच ने कहा,
"संहिता की धारा 161 के अनुसार बयान और संबंधित डॉक्यूमेंट को गवाहों की सूची के साथ संलग्न करना होगा. केस से जुड़े सभी व्यक्ति की भूमिका अलग से और स्पष्ट रूप से बयां करना चाहिए."
दो पक्षों के बीच संपत्ति पर अपना अधिकार जताने को लेकर विवाद है. संपत्ति दिल्ली में है और FIR उत्तर प्रदेश में दर्ज की गई है. दोनों पक्षों द्वारा कई FIR दर्ज कराई गई है. अपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और भरोसे को तोड़ना के आरोप लगाए हैं. एक पक्ष ने अपने खिलाफ FIR रद्द और मजिस्ट्रेट द्वारा जारी समन को रद्द करने की मांग लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट गए. उच्च न्यायालय ने इस मामले को सुनने से ही इंकार कर दिया.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट से याचिकाकर्ता को राहत मिली. अदालत ने मामले को सुना. दूसरे पक्ष को प्री-अरेस्ट बेल लेने और मजिस्ट्रेट को दोबारा से, फ्रेश समन जारी करने के आदेश दिए हैं.