सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अमरावती सांसद नवनीत कौर राणा (MP Navneet Kaur Rana) से जुड़े मामले की सुनवाई की. ये मामला सांसद की कास्ट सर्टिफिकेट (Caste Certificate) को रद्द करने के बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) के फैसले को चुनौती देने से जुड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि कैसे नियुक्त अधिकारी द्वारा निर्गत कास्ट सर्टिफिकेट को रद्द किया जा सकता है? साथ ही इसे तय करने की जबावदेही किसे दी जाए.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एमके महेश्वरी और संजय करोल की बेंच ने नवनीत राणा की याचिका सुनी, जिसमें उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने नवनीत राणा की निर्गत कास्ट सर्टिफिकेट को रद्द करने के आदेश दिया है. याचिका में राणा ने दावा किया कि कास्ट स्क्रूटनी कमिटि ने उन्हें शेड्यूल कास्ट ‘मोची’ से होने का प्रमाण पत्र दिया, जिसके बाद से ही वे शेड्यूल कास्ट के लिए रिजर्व अमरावती से 2019 का लोकसभा चुनाव जीती हैं.
कोर्ट ने कहा,
“अगर आप सेक्शन 7 और 8 को देंखे, इसमें मांग करनेवाले को प्रूव करना पड़ता है कि वे अमुक कास्ट से हैं. अगर जांच करनेवाली समिति के सामने उन्होंने अपने दावे को सिद्ध किया. समिति ने कास्ट सर्टिफिकेट को जारी किया है. अगर उसके बाद इस कास्ट सर्टिफिकेट को गलत होने का दावा किया जाता है, तो उसे रद्द करने की प्रक्रिया क्या है? दूसरा, अनुमान किस पर होगा? साथ ही इसे झूठ साबित करने का भार और उत्तरदायित्व किस पर होगा?”
कोर्ट ने केस में इन बिंदुओं पर चर्चा करने की बात कहीं है: (1) जाति प्रमाण पत्र की प्रकृति; (2) प्रमाणपत्र में लिखी जानकारी (मोची/चमार क्या जिक्र है); (3) क्या यह पहला जांच समिति के समक्ष पहला मामला है (4) प्रमाण पत्र की वैलिडिटी; (5) दावे को समर्थन करने वाले डॉक्यूमेंट; (6) विपक्ष के आरोप (7) जाति प्रमाण पत्र जांच समिति की राय (8) हाईकोर्ट के फैसले लेने का आधार
नवनीत कौर राणा महारष्ट्र के अमरावती सीट से सांसद है. यह सीट शेड्यूलड कास्ट (SC) के लिए रिजर्व थी. इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए सांसद द्वारा दिए गए कास्ट सर्टिफिकेट को चुनौती मिली, जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी कास्ट सर्टिफिकेट रद्द करने का आदेश दिया था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने जून, 2021 में रोक लगाया था. नवनीत राणा के कास्ट सर्टिफिकेट को चुनौती दी. याचिका में कहा गया कि मोची को Scheduled Caste में शामिल नहीं किया गया है. वहीं, सांसद ने बचाव में पक्ष रखा कि ‘मोची’ और ‘चमार’ एक ही है.