नई दिल्ली: दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने Juvenile Justice Act की कुछ धाराओं की संवैधानिक वैधता को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका की है.
जस्टिस मुक्ता गुप्ता और जस्टिस पूनम ए बंबा की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए केन्द्र सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, कानून और न्याय मंत्रालय और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह में जवाब पेश करने के आदेश दिए है.
बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से दायर याचिका में दावा किया गया है कि Juvenile Justice Act में किशोर न्याय की सामाजिक पृष्ठभूमि की रिपोर्ट और सामाजिक जांच रिपोर्ट से संबंधित धाराएं असंवैधानिक है.
याचिका में कहा गया कि ये धाराएं देश के संविधान के अनुच्छेद 14, 20 और 21 का उल्लंघन करती हैं क्योंकि ये बच्चे से कबूलनामे को अधिकृत करते हैं. आगे कहा गया कि यह प्रशंसापत्र बाध्यता के बराबर है क्योंकि वे एक बच्चे को खुद के खिलाफ गवाह बनने और खुद को दोषी ठहराने के लिए मजबूर करते हैं.
आयोग की ओर से Advocate RHA Sikander ने याचिका के पक्ष में तर्क देते हुए कहा कि Juvenile Justice Act के फॉर्म 1 (सामाजिक पृष्ठभूमि रिपोर्ट) के खंड 21 और 24 और फॉर्म 6 (कानून के साथ संघर्ष में बच्चों के लिए सामाजिक जांच रिपोर्ट) के खंड 42 और 43 असंवैधानिक है.
अधिवक्ता ने कहा कि सामाजिक पृष्ठभूमि रिपोर्ट फॉर्म 1 के खंड 21 और 24 के अनुसार, बाल कल्याण पुलिस अधिकारी को कथित अपराध का कारण और अपराध में बच्चे की कथित भूमिका को नोट करना आवश्यक है.
कानून के साथ संघर्ष में बच्चों के लिए सामाजिक जांच रिपोर्ट फार्म 6 के खंड 42 और 43 के अनुसार परिवीक्षा अधिकारी/बाल कल्याण अधिकारी/सामाजिक कार्यकर्ता को अपराध में बच्चे की कथित भूमिका और कथित कारण को नोट करना आवश्यक है.
अधिवक्ता ने कहा कि जेजे मॉडल नियम, 2016 के फॉर्म 1 और 6 के ये खंड एक बच्चे से बच्चे से किसी अपराध की स्वीकारोक्ति के लिए अधिकृत करते है जो की संविधान के अनुच्छेद 20 (3) का उल्लंघन है.
बहस सुनने के बाद हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, कानून और न्याय मंत्रालय और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह के भीतर अपना हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है.
हाईकोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 28 मार्च, 2023 की तारीख तय की है.