नई दिल्ली: ज्ञानवापी मस्जिद मामले (Gyanvapi Mosque case) में जिला जज (District Judge) अजय कृष्ण विश्वेश ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के सर्वे रिपोर्ट दोनों पक्षकारों को देने की रजामंदी दे दी है. मुस्लिम पक्ष ने इस फैसले पर आपत्ति जताई. इस पर जिला जज ने कहा, अगर पक्षकारों को एएसआई (ASI) रिपोर्ट की कॉपी नहीं दी जाएगी, तो इस मामले में सुनवाई आगे कैसे बढ़ेगी.
जिला कोर्ट में एएसआई की रिपोर्ट कैसे दी जाए, इस पर भी चर्चा हुई. इस दौरान हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने रिपोर्ट को ईमेल (E-mail) के जरिए मुहैया कराने की बात कहीं. इस पर कोर्ट ने ईमेल टेंपरिंग के जरिए सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक होने की बात कहीं. और हार्ड कॉपी में दोनों पक्षों को देने की बात कहीं, जिस पर दोनों पक्ष (हिंदू और मुस्लिम) के वकील सहमत हुए.
इसके बाद कोर्ट ने दोनों पक्षों को हार्ड कॉपी में रिपोर्ट देने का आदेश दिया. कयास है कि दो से तीन दिन के अंदर सर्वे की रिर्पोट दोनों पक्षों को मिलेगा. 21 जुलाई, 2023 को वारणसी जिला जज ने एएसआई (ASI) को सीलबंद क्षेत्र (वजुखाना) को छोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का 'वैज्ञानिक सर्वेक्षण' का आदेश दिया.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ( Allahabad High Court) में जस्टिस रंजन अग्रवाल नें मुस्लिम पक्ष के 5 याचिकाओं को खारिज कर दिया था. याचिका में टाइटल सूट (Title-Suit) के आधार पर ज्ञानवापी स्थल का दावा किया गया था. मुस्लिम पक्ष की पांच याचिकाएं में से दो (2) सिविल वाद (Civil Case) और तीन (3) एएसआई (ASI) सर्वे को रोकने को लेकर थी.
साल, 1991 में विश्वेश्वर ज्योर्तलिंग की और से पं. सोमनाथ व्यास तथा अन्य पक्षकारों की और से ज्ञानवापी स्थल में नए मंदिर तथा हिंदूओं को पूजा करने देने की मांग करते हुए मुकदमा दायर किया था. यह मामला सिविल जज सीनियर डिविजन के यहां दायर किया गया. वहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में एएसआई के सर्वे रिपोर्ट को लगाने का आदेश दिया था.
ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) उत्तर प्रदेश के वाराणसी (बनारस) में है. जिसका निर्माण औरंगजेब ने करवाया था. मुगल शासक औरंगजेब ने साल, 1669 में जगह पर पहले से स्थित शिव मंदिर को तोड़कर बनवाया था. मूल रूप से इस स्थान पर विश्वेश्वर मंदिर था.
प्लेसेस ऑफ वार्शिप एक्ट, 1991
भारतीय संसद में 18 सितंबर, 1991 को प्लेसेस ऑफ वार्शिप एक्ट (Places Of Worship Act, 1991) लागू हुआ. इसे धार्मिक स्थलों के रूपांतरण पर रोक और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप को बनाए रखने के लिए लाया गया था. इस के अनुसार, 15 अगस्त, 1947 को किसी धार्मिक जगह की स्थिति को बनाए रखता है.