नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर विवाद मामले में कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे के दौरान मिली शिवलिंगनुमा आकृति की Carbon Dating कराई जाए. कोर्ट ने वाराणसी जिला जज द्वारा 14 अक्टूबर, 2022 को दिए आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें उन्होंने Carbon Dating की मांग वाली अर्जी को खारिज कर दिया था.
न्यायमूर्ति अरविंद कुमार मिश्रा की बेंच ने शुक्रवार को ASI की रिपोर्ट के आधार पर शिवलिंगनुमा आकृति का साइंटिफिक सर्वे की जांच कराने का आदेश दिया और भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग से कहा कि शिवलिंग को "बिना खंडित किए वैज्ञानिक जांच करें".
याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा यह पता लगाया जाए कि जमीन के अंदर का भाग मंदिर का अवशेष है या नहीं. इन लोगो की यह भी मांग की है की विवादित ढांचे की फर्श को तोड़कर पता लगाया जाए कि 100 फीट ऊंचा ज्योतिर्लिंग स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ वहां मौजूद हैं या नहीं.
याचिकाकर्ता ने कोर्ट के समक्ष दावा किया है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के अवशेषों से ही ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण हुआ था और यह कहा की मस्जिद की दीवारों की भी जांच कर पता लगाया जाए कि ये मंदिर की हैं या नहीं.
इन्हीं दावों पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करते हुए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) की एक टीम बनाने का आदेश दिया था और उसके द्वारा ज्ञानवापी परिसर का सर्वे करने के लिए कहा गया.
ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर विवाद को लेकर हिन्दू पक्ष का दावा है कि इसके नीचे 100 फीट ऊंचा आदि विश्वेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है.
याचिका के अनुसार, काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करीब 2050 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था, लेकिन मुगल सम्राट औरंगजेब ने साल 1664 में मंदिर को तुड़वा दिया था.
याचिकाकर्ता ने अपने दावे में कहा है कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को तोड़कर उसकी भूमि पर किया गया है जो कि वर्तमान में ज्ञानवापी मस्जिद के रूप में जानी जाती है.