गुजरात के कच्छ जिले की अदालत ने पूर्व आईएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा को 2011 के भूमि आवंटन मामले में 5 साल की सख्त कैद की सजा सुनाई है. यह मामला 2004 में एक निजी कंपनी को सरकारी जमीन के आवंटन में अनियमितताओं से जुड़ा है, जिसके चलते सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ था. मामले में शर्मा के साथ-साथ नगर नियोजक नटुभाई देसाई, तत्कालीन मामलातदार नरेंद्र प्रजापति और तत्कालीन रेजिडेंट डिप्टी कलेक्टर अजीतसिंह जाला को भी 5 साल की कैद और 10,000 रुपये जुर्माने की सज़ा सुनाई गई है.
घटना साल 2004 के सॉ पाइप्स प्राइवेट लिमिटेड को सरकारी जमीन देने में बरती गई अनियमितताओं से जुड़ा है, जब शर्मा कच्छ जिले के कलेक्टर थे. इस मामले में प्राथमिकी 2011 में दर्ज की गई थी. पूर्व IAS प्रदीप शर्मा पर आरोप लगा कि उन्होंने कच्छ जिले के कलेक्टर रहते हुए सॉ पाइप्स प्राइवेट लिमिटेड को सरकारी जमीन का आवंटन करते समय नियमों का उल्लंघन किया और सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाया. शर्मा और अन्य तीन के खिलाफ 2011 में CID क्राइम राजकोट जोन पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज की गई थी. यह FIR भारतीय दंड संहिता की धारा 409 (सार्वजनिक सेवकों द्वारा आपराधिक विश्वासघात), 120B (आपराधिक साजिश) और 217 (एक सार्वजनिक सेवक जानबूझकर कानून के निर्देश का उल्लंघन करना) के तहत दर्ज की गई थी. शर्मा को 4 मार्च, 2011 को गिरफ्तार किया गया था.
भुज में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट जेवी बुद्धा की अदालत ने शर्मा के अलावा शहरी योजनाकार नटुभाई देसाई, तत्कालीन मामलतदार नरेंद्र प्रजापति और तत्कालीन निवासी उप कलेक्टर अजीतसिंह जाला को भी पांच साल की सजा और प्रत्येक पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया है. अदालत ने कहा कि शर्मा की सजा तब शुरू होगी जब वह इस वर्ष 20 जनवरी को अहमदाबाद में एक सत्र अदालत द्वारा दिए गए सजा को पूरा करेंगे. अदालत ने कहा कि शर्मा की सजा 2004 के भ्रष्टाचार के एक मामले में इस वर्ष 20 जनवरी को अहमदाबाद की एक सत्र अदालत द्वारा दी गई पांच साल की सजा पूरी होने के बाद शुरू होगी.
मुकदमे की कार्यवाही के दौरान अभियोजन पक्ष ने 52 दस्तावेजी साक्ष्य और 18 गवाहों के बयान अदालत में पेश किए. अभियोजन के अनुसार, शर्मा ने सरकारी नियमों का उल्लंघन करते हुए विभिन्न आदेशों के माध्यम से सॉ पाइप प्राइवेट लिमिटेड को भूमि आवंटित की, जिससे सार्वजनिक खजाने को वित्तीय नुकसान हुआ. भूमि का आवंटन 2 हेक्टेयर की सीमा से अधिक था, जो कि गुजरात सरकार के राजस्व विभाग के 6 जून 2003 के निर्देशों का उल्लंघन करता है. इस निर्देश के अनुसार कलेक्टर को औद्योगिक उद्देश्यों के लिए 2 हेक्टेयर तक की भूमि आवंटित करने की अनुमति दी गई थी. अभियोजन ने यह भी कहा किया कि आरोपियों ने अपने अधिकार से परे जाकर और राज्य सरकार के आदेशों को ध्यान में रखे बिना आपराधिक कृत्य किया. उनका उद्देश्य कंपनी को वित्तीय लाभ पहुंचाना और सरकार को वित्तीय नुकसान पहुंचाना था. अन्य तीन आरोपी मुख्य आरोपी के साथ साजिश में शामिल थे और जिला भूमि मूल्यांकन समिति की बैठक के दौरान सहयोग किया. अभियोजन पक्ष ने इस बात पर जोर दिया कि इन सभी ने मिलकर सरकारी नियमों का उल्लंघन किया.