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पूर्व CJI एस ए बोबडे ने संस्कृत का किया समर्थन, कहा यह धर्मनिरपेक्ष भाषा है

संस्कृत भाषा को देश की आधिकारिक भाषा बनाने की मांग लंबे वक्त से चल रही है. अब इसके समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व CJI भी उतर आए हैं.

Written by My Lord Team |Published : January 30, 2023 8:14 AM IST

नई दिल्ली: भारत के पूर्व CJI एसए बोबडे ने संस्कृत को देश की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए समर्थन किया है. उन्होने कहा कि संस्कृत ठीक वही कर सकती है जो अंग्रेजी भाषा करने में सक्षम है, जो भारत में विभिन्न राज्यों और संस्कृतियों की संपर्क भाषा है. उन्होंने कहा कि अंग्रेजी आधिकारिक भाषा बन गई क्योंकि भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान यह एकमात्र आधिकारिक भाषा थी. बोबडे ने यह बात संस्कृत भारती द्वारा पिछले सप्ताह (January 27) आयोजित अखिल भारतीय छात्र सम्मेलन में कही.

पूर्व सीजेआई बोबडे ने कहा "अगर ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा और भारत में एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में घोषित करने के लिए नहीं था, तो हमारे पास यह अवधारणा नहीं हो सकती थी क्योंकि, संस्कृत ठीक वही कर सकती है जो अंग्रेजी भाषा कर सकती है, अर्थात् देश की संपर्क भाषा बनें."

उन्होंने आगे कहा कि 'हर कोई केवल अंग्रेजी को समझने या बोलने में सक्षम है क्योंकि इसे बिना किसी धर्म से जोड़े सिर्फ एक भाषा के रूप में पेश किया गया था'.

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"यदि किसी ऐसे देश में अंग्रेजी का परिचय देना संभव होता जहां कोई इसे कोई नहीं समझता, तो न केवल इसे पेश किया गया है बल्कि इसे एक आधिकारिक भाषा के रूप में समृद्ध भी  किया गया तभी तो 2023 में एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश आपसे अंग्रेजी में बात कर रहे हैं. हर कोई अंग्रेजी में बात करता है. यह कैसे संभव है? क्योंकि इसे एक आसान भाषा के रूप में पेश किया गया था न कि धर्म या किसी धर्म के हिस्से के रूप में."

पूर्व CJI ने कहा कि नासा (NASA) के कुछ वैज्ञानिकों ने एक पेपर लिखा है जिसमें कहा गया है कि संस्कृत का उपयोग कम से कम संभव शब्दों में संदेशों (messages) को संप्रेषित (communicate) करने के लिए किया जा सकता है.

उन्होंने आगे कहा कि "ब्रिटिश काल के विपरीत  AI tolls के कारण आज भाषा को समझना आसान होगा." "AI प्रति सेकंड 1 अरब अक्षरों पर काम करता है और इन शब्दों के उपयोग से पूरी शब्दावली का बनाई जा सकती है जिसे भारत में हर कोई समझ सकता है."

उन्होंने यह भी कहा कि "संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष (chairperson of the drafting committee of the Constitution) भारत सरकार की आधिकारिक भाषा के रूप में संस्कृत होने के पहले समर्थक थे.

"डॉ अंबेडकर ने 11 सितंबर, 1949 को संविधान सभा के लिए एक संकल्प प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किया था, जिसमें प्रस्तावित किया गया था कि संवैधानिक आवश्यकता के रूप में संस्कृत भारत सरकार की आधिकारिक भाषा होनी चाहिए और उस संकल्प प्रस्ताव पर पश्चिम बंगाल के प्रोफेसर नज़ीरुद्दीन अहमद, बालकृष्ण विश्वनाथ केसकर, दक्षिणायनी वेलायुधन जैसे लोगों के द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे. उन्होंने 11 सितंबर, 1949 को पूरी चेतना के साथ इसे पेश करते हुए कहा था कि "हमारी आबादी अंग्रेजी में शासन को समझने में सक्षम नहीं होगी. "

उन्होंने कहा कि वर्तमान में, हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं का उपयोग कानूनन शासन और अदालतों में आधिकारिक भाषाओं के रूप में किया जा रहा है, उन्होंने कहा कि प्रत्येक CJI (High Court ) को लोग अपने संबंधित क्षेत्रीय भाषाओं में अदालत में सुनवाई करने के की अपील करते हैं.

बोबडे ने आगे सुझाव दिया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 351 के तहत हिंदी को आठ अनुसूचियों की हिंदुस्तानी और अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूपों, संकेतों और अभिव्यक्तियों के अनुसार विकसित करना है.

"हिंदी में कुछ जोड़कर हिंदी को बढ़ाया जाना चाहिए, फिर संस्कृत क्यों नहीं? अभी भी एक मौका है कि संस्कृत को अच्छे कारणों के साथ पेश किया जा सकता है, लेकिन मैं एक बात स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं संस्कृत की राज्य भाषा के रूप में बात कर रहा हूं, एक धर्मनिरपेक्ष भाषा के रूप में क्योंकि इन भाषाओं के मेरे सीमित ज्ञान में कन्नड़, ओडिया, असमिया, उर्दू और कई अन्य भाषाओं में 60% से 70% शब्द संस्कृत से हैं."

संस्कृत एक व्यवहार्य धर्मनिरपेक्ष भाषा है, इतनी धर्मनिरपेक्ष कि इसे एक कंप्यूटर द्वारा उपयोग किया जा सकता है; उन्होंने कहा कि किसी धर्म का सवाल ही नहीं है, किसी पक्षपात का सवाल ही नहीं है. हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि जनसंख्या पर एक भाषा नहीं थोपी जानी चाहिए.