नई दिल्ली: Jamia Millia Islamia विश्वविद्यालय के विभिन्न कोर्स में EWS reservation लागू करने की मांग को लेकर दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने जामिया यूनिवर्सिटी, यूजीसी और केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
दिल्ली विश्वविद्यालय की कानून की छात्रा आकांक्षा गोस्वामी द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने ये आदेश दिए है.
जनहित याचिका में अदालत से अनुरोध किया गया है कि विश्वविद्यालय में प्रवेश के समय आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग श्रेणी के छात्रों को 10% आरक्षण प्रदान करने के निर्देश दिए जाए.
कोर्ट ने याचिका में अंतरिम राहत के आवेदन पर भी जामिया सहित सभी पक्षकारों को नोटिस जारी किया जिसमें मांग की गई है कि जामिया को याचिका के अंतिम निस्तारण तक शैक्षणिक वर्ष 2023-2024 के लिए प्रवेश प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए.
पीठ ने इस याचिका को पूर्व में लंबित एक याचिका के साथ टैग करने के निर्देश दिए है जिसमें जामिया विश्वविद्यालय के अलसंख्यक दर्ज को चुनौती दी गई है.
याचिका में कहा गया है कि हालांकि जामिया की स्थापना 1920 में अलीगढ़ में हुई थी, संसद ने जामिया मिलिया इस्लामिया अधिनियम, 1988 पारित किया, जिसके माध्यम से विश्वविद्यालय को एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में शामिल किया गया.
याचिका में कहा गया कि संसद ने ईडब्ल्यूएस श्रेणी को 10% आरक्षण देने वाले 103वें संवैधानिक संशोधन को पारित कर दिया है. जामिया ने अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में अपनी स्थिति का हवाला देते हुए इसे लागू करने से इनकार करते हुए एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की है.
जनहित याचिका में कहा गया है कि क्योंकि जामिया को केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित किया गया है, एस अज़ीज़ बाशा बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, यह अल्पसंख्यक संस्थान की स्थिति का दावा नहीं कर सकता है.
याचिका में कहा गया है जामिया को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान आयोग (NCMEI) द्वारा अल्पसंख्यक संस्थान घोषित नहीं किया जा सकता था क्योंकि यह एक विश्वविद्यालय है, और NCMEI अधिनियम, 2004 आयोग को केवल अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा प्रदान करने का अधिकार देता है. एक कॉलेज / शैक्षणिक संस्थान को नही.
याचिका में कहा गया कि जामिया मिलिया इस्लामिया अधिनियम की धारा 7 कहती है कि विश्वविद्यालय लिंग और किसी भी नस्ल, पंथ, जाति या वर्ग के व्यक्तियों के लिए खुला होगा, और प्रवेश के लिए धार्मिक विश्वास का कोई परीक्षण नहीं अपनाएगा.
हालांकि, याचिकाकर्ता ने कहा कि जामिया ने मुस्लिम छात्रों को हर पाठ्यक्रम में 50% आरक्षण देना शुरू कर दिया है, जो अधिनियम की धारा 7 के सीधे विरोध में है. जनहित याचिका में कहा गया है कि यह एससी/एसटी/ओबीसी/ईडब्ल्यूएस छात्रों को कोई आरक्षण प्रदान नहीं करता है.
बहस सुनने के बाद पीठ ने इस मामले में जामिया विश्वविद्यालय, यूजीसी और केन्द्र सरकार सहित सभी पक्षकारों को 18 अप्रैल तक जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है.