Medical Termination Of Pregnancy: महाराष्ट्र की 14 साल की रेप पीड़ित, जो 28 हफ्ते (7 माह) की प्रेग्नेंट है, उसे सुप्रीम कोर्ट ने अबॉर्शन कराने की इजाजत दी. पीड़िता को बॉम्बे हाईकोर्ट से इजाजत नहीं मिली थी. पीड़िता ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता को राहत देते हुए गर्भपात कराने की इजाजत दी है. बता दें कि कोर्ट ने पिछली सुनवाई (19 अप्रैल, 2024) के दिन नाबालिग का मेडिकल टेस्ट कराने का आदेश दिया, साथ ही रिपोर्ट को जल्द से जल्द अदालत के सामने पेश करने के आदेश दिए थे. अदालत ने पूछा था कि अगर पीड़िता को गर्भपात कराने की इजाजत दी जाती है, ऐसा करने से मनौवैज्ञानिक रूप से क्या प्रभाव पड़ेगा? रिपोर्ट पर विचार करने के बाद अदालत ने पीड़िता को गर्भपात कराने की इजाजत दे दी है.
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने मामले की सुनवाई की. बेंच ने मुंबई के सायन स्थित लोकमान्य तिलक मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (LTMGH) द्वारा दिए रिपोर्ट को रिकार्ड पर रखा. रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया था कि गर्भावस्था जारी रहने से महिला के मानसिक और शारीरिक स्थिति पर गंभीर असर पड़ेगा. रिपोर्ट में गर्भावस्था को जोखिम भरा बताया. वहीं मेडिकल बोर्ड ने राय दी कि बच्चे को जन्म देने की अपेक्षा गर्भपात कराने में जोखिम कम रहेगा. सीजेआई ने इस स्थिति को कष्टकारी बताते हुए कहा, कि पीड़िता के लिए आने वाला हर कठिनाई से भरा है. सीजेआई ने अनुच्छेद 142 के तहत मिले शक्तियों का प्रयोग करते हुए पीड़िता को गर्भपात कराने की इजाजत दी.
गर्भ को खत्म करने को लेकर 1971 में कानून बनाया गया. नाम- मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट. साल 2000 में MTP एक्ट में कुछ संशोधन किया गया था.
संशोधन के बाद, किसी भी शादीशुदा महिला, रेप विक्टिम, दिव्यांग महिला और नाबालिग लड़की को 24 हफ्ते तक की प्रेग्नेंसी खत्म करने की इजाजत दी गई. 24 हफ्ते से ज्यादा प्रेग्नेंसी होने पर गर्भ खत्म करने के लिए कोर्ट से इजाजत लेनी पड़ती है. मेडिकल बोर्ड की सलाह पर कोर्ट फैसला सुनाता है.