नई दिल्ली: Bombay High Court की गोवा बेंच ने पारिवारिक संपत्ति में बेटी के अधिकार को लेकर महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर किसी बेटी को उसकी शादी के समय दहेज दिया जाता है, तो भी परिवार की संपत्ति में उसका अधिकार समाप्त नहीं होता है और वह उसके बाद भी दावा कर सकती है.
याचिकाकर्ता Terezinha Martins David की ओर से दायर याचिका में हाईकोर्ट ने उनके 4 भाइयों और मां की ओर से दी गई इन दलीलों को खारिज करते हुए ये फैसला दिया है कि शादी के समय चुकी उनकी बेटी को दहेज दिया गया था, इसलिए वह पारिवारिक संपत्ति में हिस्सेदारी का दावा नहीं कर सकती.
जस्टिस महेश सोनम ने अपने फैसले में कहा कि "यहां तक कि अगर यह मान भी लिया जाए कि बेटियों को कुछ दहेज दिया गया था, तो इसका मतलब यह नहीं है कि बेटियों का पारिवारिक संपत्ति में कोई अधिकार नहीं रह जाता है. पिता की मृत्यु के बाद जिस तरह भाइयों ने बेटियों के अधिकारों को खत्म करने का प्रयास किया है, वैसा नहीं हो सकता था"
इसके साथ ही अदालत ने ये भी कहा कि परिवार के पास यह साबित करने के लिए उचित सबूत या सामग्री नहीं है कि बेटियों को पर्याप्त दहेज दिया गया था.
हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता बेटी ने अपनी मां और चार भाइयों के खिलाफ अपने परिवार की संपत्तियों में किसी तीसरे पक्ष के अधिकार बनाने पर रोक लगाने की मांग की थी. याचिका में कहा गया कि वह घर की सबसे बड़ी विवाहित पुत्री है, लेकिन उसके चार भाइयों और माँ द्वारा किसी भी संपत्ति में हिस्सा नहीं दिया जा रहा है.
अदालत में याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया मां और अन्य बहनों ने उसके दो भाइयों के पक्ष में 1990 में किए गए ट्रांसफर डीड के लिए सहमति दी थी, जिसके आधार पर परिवार की दुकान और घर दोनों भाइयों के पक्ष में ट्रांसफर कर दिए गए थे.
याचिकाकर्ता का तर्क था कि इस ट्रांसफर के बारे में उसे बाद में पता चला जिसके बाद उसने दीवानी अदालत के समक्ष कार्यवाही शुरू की. मामले में अदालत के आदेश के खिलाफ अपील पर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई.
हाईकोर्ट में याचिका का विरोध करते हुए याचिकाकर्ता के भाईयों की ओर से कहा गया कि पारिवारिक संपत्तियों में उसका कोई अधिकार नहीं है. भाईयो की ओर से कहा गया कि पारिवारिक संपत्ति का ट्रांसफर मौखिक सहमति के आधार पर किया गया था, जिसमें उनकी अन्य तीन बहनों ने अपने अधिकारों का त्याग कर दिया था क्योंकि अपीलकर्ता की तरह उन्हें भी उनकी शादी के समय दहेज दिया गया था.
भाइयों ने यह भी कहा कि वर्तमान कार्यवाही को लिमिटेशन एक्ट द्वारा रोक दिया गया था क्योंकि डीड के डिक्री या निष्पादन के बारे में जानने के तीन साल के भीतर ही मुकदमा दायर करने की अनुमति मिलती है.
भाईयो की ओर से कहा गया कि इस मामले में उनकी संपत्ति का ट्रांसफर 1990 में किया गया था, जबकि करीब 4 साल बाद इस मामले में मुकदमा दर्ज किया गया.
हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में भाई यह साबित करने में विफल रहे है कि उसकी बहन जो की याचिकाकर्ता है उसे संपत्ति के ट्रांसफर की जानकारी 1990 में ही हो गयी थी.
अदालत ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता का दावा है कि उसके द्वारा वर्ष 1994 में संपंति ट्रांसफर के बारे में जानकारी होने के 6 सप्ताह के भीतर मुकदमा दायर किया गया था.
बहस सुनने के बाद अदालत ने तीन अन्य बहनों द्वारा अपने भाईयो के नाम ट्रांसफर की गई संपत्ति के ट्रांसफर को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता बेटी के पक्ष में फैसला सुनाया.