Egg Donor Has No Legal Rights Over Child: विज्ञान ने मानव जीवन की कठिनाइयों को हल किया है, तो वहीं कानूनी समस्याओं को भी उत्पन्न किया है. ऐसा ही एक मामला बॉम्बे हाईकोर्ट के सामने आया, जिसमें सरोगेसी के जरिए छोटी बहन के एग से बड़ी बहन को मां बनने का मौका मिला. बॉम्बे हाईकोर्ट ने सरोगेसी के जरिए एग डोनर की भूमिका को स्पष्ट किया है. उच्च न्यायालय ने साफ तौर पर कहा कि एग डोनेट करने वाले का बच्चे पर कोई कानूनी अधिकार नहीं हो सकता है, साथ ही वह उसका बायोलॉजिकल पेरेंट होने का भी दावा नहींं कर सकता है. साथ ही कोर्ट ने ठाणे अदालत का फैसला बदलते हुए कहा कि एक महिला (बड़ी बहन) को उसके जुड़वा बच्चे से मिलने पर रोक नहीं लगाई जा सकती है. बड़ी बहन को उसके जुड़वा बच्चे से मिलने की इजाजत दे दी.
बॉम्बे हाईकोर्ट में जस्टिस मिलिंद जाधव की एकल-जज पीठ ने इस मामले की सुनवाई की. उन्होंने सरोगेसी प्रक्रिया में एग डोनर का बच्चे पर कानूनी अधिकार मानने से इंकार कर दिया है. अदालत ने कहा कि एग डोनर का बच्चे पर लीगल के साथ-साथ बायोलॉजिकल रूप से भी उसका कोई अधिकार नहीं है.
अदालत ने बच्चे को मां से मिलने की इजाजत देते हुए कहा कि हर बीतता दिन मां के लिए पक्षपातपूर्ण और दर्दनाक है, वहीं पिता के लिए ये हर बीतता दिन फायदेमंद.
बड़ी बहन की शादी 2012 में हुई थी, लंबे समय तक दंपत्ति गर्भधारण करने में असमर्थ थे. साल 2018 में बड़ी बहन को डॉक्टर ने सरोगेसी की सलाह दी. छोटी बहन एग डोनर बनी. इस दौरान 2019 में छोटी बहन, वो भी शादीशुदा थी, कार एक्सीडेंट का शिकार होती है जिसमें उसके पति और बच्ची की मौत हो जाती है.
और घटना के चार महीने बाद, सरोगेसी के जरिए बड़ी बहन को जुड़वा बच्चे हुए. साल 2021 में वैवाहिक कलह के चलते पति बॉम्बे से झारखंड चला गया, बच्चे को भी अपने साथ ले गया. छोटी बहन भी उनके साथ चली गई.
अब बड़ी बहन ने बच्चे की कस्टडी मांगी. बात अदालत तक पहुंची, तो जिला अदालत ने कस्टडी देने से इंकार करते हुए कहा कि वे बच्चे की जैविक मां नहीं है. अब जिला अदालत के इस फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है.