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सीनियर का आदेश नहीं माना, धर्म को ऊपर रखा, अब सैन्य अधिकारी के बर्खास्तगी के फैसले को Delhi HC ने बरकरार रखा

सैन्य अधिकारी के सेवा बर्खास्तगी के फैसले को बरकरार रखते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि अधिकारी ने अपने धर्म को अपने सीनियर अधिकारी के आदेश से ऊपर रखा, जो सेना अधिनियम के तहत अपराध है.

Delhi HC

Written by Satyam Kumar |Published : June 2, 2025 11:13 AM IST

दिल्ली हाई कोर्ट ने साप्ताहिक रेजिमेंटल धार्मिक परेड में पूरी तरह से भाग लेने से लगातार इनकार करने पर एक ईसाई सैन्य अधिकारी की सेवा समाप्त किये जाने के आदेश को बरकरार रखा और कहा है कि सशस्त्र बल धार्मिक रूप से विभाजित होने के बजाय अपनी वर्दी के आधार पर एकजुट होते हैं।

जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की पीठ ने भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने तीन मार्च, 2021 के आदेश को चुनौती दी है जिसके तहत उन्हें पेंशन और ग्रेच्युटी के बिना भारतीय सेना से बर्खास्त कर दिया गया था। याचिका दायर करने वाले लेफ्टिनेंट ने एक स्क्वाड्रन के ‘ट्रूप लीडर’ के रूप में काम किया था. अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अपने धर्म को अपने वरिष्ठ के वैध आदेश से ऊपर रखा जबकि अवज्ञा करना सेना अधिनियम के तहत अपराध है.

हाई कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में सवाल धार्मिक स्वतंत्रता का नहीं है, बल्कि यह अपने वरिष्ठ के वैध आदेश का पालन करने का सवाल है. हाई कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता ने अपने वरिष्ठ के वैध आदेश से ऊपर अपने धर्म को रखा है। इसने कहा कि यह स्पष्ट रूप से अनुशासनहीनता का कृत्य है.

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सैन्य अधिकारी के सेवा बर्खास्तगी के फैसले को बरकरार रखते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि अधिकारी ने अपने धर्म को अपने सीनियर अधिकारी के आदेश से ऊपर रखा, जो सेना अधिनियम के तहत अपराध है.

हाई कोर्ट ने कहा,

‘‘हमारे सशस्त्र बलों में सभी धर्मों, जातियों, पंथों, क्षेत्रों और आस्थाओं के कार्मिक शामिल हैं, जिनका एकमात्र उद्देश्य देश को बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित रखना है और इसलिए वे अपने धर्म, जाति या क्षेत्र के आधार पर विभाजित होने के बजाय अपनी वर्दी के आधार पर एकजुट हैं.’’

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उनकी रेजिमेंट अपनी धार्मिक आवश्यकताओं और परेड के लिए केवल एक मंदिर और एक गुरुद्वारा ही रखे हुए है. याचिकाकर्ता ने खुद को ईसाई धर्म को मानने वाला बताते हुए साप्ताहिक धार्मिक परेड और अन्य कार्यक्रमों के दौरान अपने सैनिकों के साथ जाते समय मंदिर के सबसे भीतरी भाग में प्रवेश करने से छूट मांगी थी.

सेना के अधिकारियों ने बर्खास्तगी का बचाव करते हुए कहा कि सेना में अन्य ईसाई अधिकारियों के माध्यम से प्रयास किए गए थे और बर्खास्त अधिकरी (याचिकाकर्ता) को एक स्थानीय चर्च के पादरी के पास भी ले जाया गया, जिन्होंने याचिकाकर्ता से कहा कि अपने कर्तव्य के हिस्से के रूप में ‘सर्व धर्म स्थल’ में प्रवेश करना उसके ईसाई धर्म पर कोई असर नहीं डालेगा, लेकिन इसके बावजूद याचिककर्ता अपने रुख पर अडिग रहा.

दिल्ली हाई कोर्ट ने 30 मई के अपने फैसले में प्रतिकूल परिस्थितियों में दिन-रात हमारी सीमाओं की रक्षा करने वालों के समर्पण को ‘सलाम’ किया और कहा कि दिखने में एकरूपता तथा सभी धर्मों के प्रति सम्मान, सशस्त्र बल के सुसंगठित, अनुशासित तथा समन्वित कामकाज के लिए आवश्यक है तथा सशस्त्र बल धर्म से पहले राष्ट्र को रखते हैं. पीठ ने तीन मार्च 2021 के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं पाते हुए सैन्य ऑफिसर की याचिका खारिज की.