Rape With Minor: हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने नाबालिग से यौन उत्पीड़न के आरोपी की 10 साल की जेल की सजा को बरकरार रखा है. अदालत ने सजा को सही ठहराते हुए कहा कि आरोपी खुद को बेगुनाह साबित करने में असफल रहा. शख्स ने दस साल की सजा को रद्द करने की मांग करते हुए कहा कि पीड़िता केवल 13 साल की है, उसके परिवार वालों ने दबाव बनाकर उससे झूठा मुकदमा दर्ज करवाया है. हालांकि, दिल्ली हाई कोर्ट ने दलीलों को मानने से इंकार करते हुए उसकी सजा खारिज कर दी है.
यह मामला 2017 की है, जब 13 वर्षीय पीड़िता को पेट में दर्द हुआ, जांच कराने पर वह गर्भवती पाई गई. इस घटना के बाहर आने के बाद पीड़िता ने अपनी दादी को बताया कि आरोपी, जो उसे जानता था, जब भी उसकी दादी काम पर जाती थी, उसके साथ बार-बार यौन उत्पीड़न करता था. पीड़िता के बयान के आधार पर पुलिस ने पॉक्सो अधिनियम के तहत मामले को दर्ज किया. वहीं, सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि घटना के बाद लड़की गर्भवती हो गई थी और बाद में उसकी गर्भावस्था को समाप्त कराया गया था. ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी पाते हुए दस साल जेल की सुनाई गई. आरोपी शख्स ने नाबालिग पीड़िता के बयानों में अंतर को आधार बनाकर अपनी सजा को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दिया था.
दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस अमित महाजन ने कहा कि दोषी यह साबित करने में असफल रहा कि पीड़िता को सिखाया गया था. अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने सही सवाल उठाया कि एक 13 वर्षीय लड़की ऐसी कहानी क्यों बनाएगी?
हाई कोर्ट ने कहा,
"अपराध के लिए सजा उचित है. इस अदालत को अपील के खिलाफ हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखाई पड़ता."
सजा में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए अदालत ने कहा कि "पीड़िता कभी भी अपने स्पष्ट बयान से विचलित नहीं हुई कि आरोपी ने उसके साथ कई बार यौन उत्पीड़न किया." बचाव पक्ष द्वारा उठाए गए छोटे अंतर की बात पीड़िता की गवाही की कुल विश्वसनीयता को कमजोर नहीं करते. साथ ही फोरेंसिक रिपोर्ट भी दावे को सही ठहराते हैं.