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यौन गतिविधियों में सहमति का अर्थ सोशल मीडिया पर 'अंतरंग' की वीडियो शेयर करने की इजाजत नहीं: Delhi HC

दिल्ली हाई कोर्ट ने बलात्कार के आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि सहमति निजी तस्वीरों के दुरुपयोग और शोषण की अनुमति तक विस्तारित नहीं है.

सांकेतिक चित्र

Written by My Lord Team |Published : January 23, 2025 3:09 PM IST

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि यौन संबंध बनाने के लिए सहमति निजी क्षणों को फिल्माने और उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की अनुमति नहीं देती है. जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने बलात्कार के आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि सहमति निजी तस्वीरों के दुरुपयोग और शोषण की अनुमति तक विस्तारित नहीं है. अदालत ने 17 जनवरी के फैसले में कहा कि भले ही शिकायतकर्ता द्वारा किसी भी समय यौन संबंधों के लिए सहमति दी गई हो, लेकिन ऐसी सहमति को किसी भी तरह से उसका अनुचित वीडियो बनाने और सोशल मीडिया मंच पर पोस्ट करने की सहमति के रूप में नहीं माना जा सकता है. शारीरिक संबंधों में शामिल होने की सहमति किसी व्यक्ति के निजी क्षणों के दुरुपयोग या शोषण या अनुचित और अपमानजनक तरीके से उनके चित्रण तक विस्तारित नहीं है. दिल्ली हाई कोर्ट की यह टिप्पणी तब आई जब एक व्यक्ति ने विवाहित महिला में दर्ज कराए रेप केस में जमानत की मांग की थी.

दिल्ली हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि शारीरिक संबंधों के लिए सहमति का मतलब यह नहीं है कि किसी व्यक्ति के निजी क्षणों का दुरुपयोग या अनुचित और अपमानजनक तरीके से रिकॉर्ड किया जा सकता है. महिला ने आरोप लगाया कि आरोपी ने उसे एक कोर्स में एडमिशन के लिए पैसे दिए थे, जिसे उसने नौकरी पाने के बाद लौटाने का वादा किया था. प्राथमिकी के अनुसार, आरोपी ने उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया और उसके यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया.

महिला ने यह भी आरोप लगाया कि आरोपी ने उसे व्हाट्सएप वीडियो कॉल के दौरान कपड़े उतारने के लिए कहा और बाद में उसके नग्न वीडियो को अपने मोबाइल पर दिखा कर दो दिनों तक शारीरिक संबंध स्थापित करने के लिए उसे धमकाया. इसके अलावा, उसने उसके वीडियो को उसके गांव के लोगों को भेजा और बाद में सोशल मीडिया पर अपमानजनक वीडियो पोस्ट किया.

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अदालत ने कहा कि भले ही पहले यौन संबंध सहमति से थे, लेकिन आरोपी के बाद के कार्य स्पष्ट रूप से बल और ब्लैकमेल में निहित थे. अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी ने रिश्ते का दुरुपयोग किया है और इसे एक ऋण लेन-देन के रूप में प्रस्तुत किया. अदालत ने आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि एक दोस्ताना रिश्ते में वित्तीय सहायता का मतलब दूसरे व्यक्ति की असुरक्षा या गरिमा का दुरुपयोग करना नहीं है. दिल्ली हाई कोर्ट ने एफएसएल से मामले की रिपोर्ट जल्द से जल्द तैयार करने का अनुरोध किया.

केस टाइटल: सुधीर कुमार बनाम दिल्ली (SUDHIR KUMAR vs THE STATE NCT OF DELHI)

(खबर पीटीआई इनपुट से है)