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'शहर एक से दूसरे समस्या की ओर बढ़ रहा और नेताओं के पास सिर्फ मुफ्त सुविधाओं के लिए पैसे', जानें दिल्ली हाईकोर्ट ने नगर प्रशासन को फटकारते हुए और क्या कहा

मद्रासी कैंप के निवासियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि नेता शहर के विकास के लिए न तो धन जुटा रहे हैं और न ही खर्च कर रहे हैं, बल्कि वे केवल जनता को मुफ्त सुविधाएं उपलब्ध कराने पर पैसा खर्च कर रहे हैं, जिससे शहर के किसी बुनियादी सुविधाओं का विकास नहीं होगा.

दिल्ली हाईकोर्ट

Written by My Lord Team |Published : November 24, 2024 4:10 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने लोगों की जरूरतों के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी के बुनियादी ढांचे को उन्नत करने में विफल रहने के लिए अधिकारियों को शुक्रवार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि नगर प्रशासन ध्वस्त हो गया है.  उच्च न्यायालय ने दिल्ली के बुनियादी ढांचे में सुधार करने में विफल रहने के लिए अधिकारियों की आलोचना की, कहा कि शहर सूखे, बाढ़ और गंभीर प्रदूषण के चलते सालों भर संकट से ग्रस्त हैं. पीठ ने कहा कि राजनीतिक नेता विकास के लिए धन नहीं जुटा रहे हैं या खर्च नहीं कर रहे हैं, इसके बजाय मुफ्त सेवाएं प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. दिल्ली हाईकोर्ट ने ये बातें जंगपुरा स्थित जेजे क्लस्टर मद्रासी कैंप के निवासियों की बेदखली नोटिस के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करने के दौरान ये बातें कही.

विकास नहीं! नेताओं के पास फ्रीबीज के लिए पैसे हैं

चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत पीएस अरोड़ा की पीठ ने टिप्पणी की कि राजनीतिक नेता शहर के विकास के लिए न तो धन जुटा रहे हैं और न ही खर्च कर रहे हैं, बल्कि वे केवल जनता को मुफ्त सुविधाएं उपलब्ध कराने पर पैसा खर्च कर रहे हैं, जिससे कोई बुनियादी ढांचा नहीं बनेगा. पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी हर दिन किसी न किसी संकट से गुजर रही है और सालों भर शहर को सूखे, बाढ़ और गंभीर प्रदूषण का सामना करना पड़ा है.

अदालत ने कहा,

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‘‘इस साल हम किस दौर से गुजरे हैं, इस पर गौर करें. पहले हमारे यहां सूखे की स्थिति थी और लोग यह कहते हुए अनशन कर रहे थे कि पानी नहीं है, फिर बाढ़ आई और लोगों की जान चली गई. फिर प्रदूषण और एक्यूआई (वायु गुणवत्ता सूचकांक) के स्तर को देखिए.’’

पीठ ने आगे कहा कि देखिए कि शहर किस दौर से गुजर रहा है. यह एक संकट से दूसरे संकट की ओर बढ़ रहा और इसके लिए बहुत गंभीर प्रबंधन की आवश्यकता है. अदालत ने कहा कि राजनीतिक प्रतिष्ठान प्रभावित पक्षों की बात नहीं सुन रहा है, बल्कि केवल समस्या पैदा करने वालों की बात सुन रहा है.

पीठ ने दुख जताते हुए कहा,

‘‘नागरिकों के रूप में हमें यह तय करना होगा कि शहर 3.3 करोड़ लोगों को समायोजित कर सकता है या नहीं. हमारे पास 3.3 करोड़ लोगों के लिए बुनियादी ढांचा है या नहीं? यह मूल मुद्दा है जिस पर निर्णय लेने की आवश्यकता है.’’

अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि राजनीतिक नेता न तो पैसा जुटा रहे हैं और न ही उसे खर्च कर रहे हैं.

पीठ ने कहा,

‘‘वे इसे केवल मुफ्त की सुविधाएं (फ्रीबीज) देने पर खर्च कर रहे हैं.  मुफ्त की सुविधाएं आपके बुनियादी ढांचे को नहीं बनाएंगी, वे केवल यह सुनिश्चित करेंगी कि आप जहां हैं, वहीं रहें. वर्तमान में, राजनीतिक वर्ग केवल नारे बेच रहा है और हम इसे खरीद रहे हैं.’’

अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि नगर प्रशासन अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहा है और सारा बोझ न्यायपालिका पर आ गया है. पीठ ने कहा कि हमारे पास बहुत ही अक्षम प्रणाली है और सभी संगठन अलग-अलग काम कर रहे हैं. सारा बोझ न्यायपालिका पर आ रहा है. हमें नालियों और अनधिकृत निर्माणों की देखरेख नहीं करनी चाहिए, लेकिन आधे दिन हम यही काम कर रहे हैं, जो हमारा काम नहीं है, जबकि यह काम (नगर) प्रशासन को करना है.

अब मामले की सुनवाई 29 नवंबर को होगी.

(खबर PTI इनपुट पर आधारित है)