दिल्ली हाईकोर्ट ने रोहिंग्या समुदाय से जुड़ी याचिका ये कहते हुए खारिज कर दी कि किसी विचार या तथ्य को रखने से पहले ही रोक लगाने की अनुमति नहीं दी जा सकती. कोर्ट ने कहा कि किसी विषय पर पूर्व सेंसरशिप उस समस्या को रोकने की जगह दूसरी बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है. बता दें कि, दो रोहिंग्या मुसलमानों ने दिल्ली हाईकोर्ट में सोशल साइट फेसबुक (Facebook) पर बढ़ रहे रोहिंग्या समुदाय से जुड़े घृणित और हानिकारक कंटेट पर रोक लगाने की मांग की थी.
इस मामले की सुनवाई एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने की. याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि फेसबुक (Facebook) पर रोहिंग्या से जुड़े किसी भी प्रकाशन की पूर्व सेंसरशिप होनी चाहिए, ऐसा ईलाज है जो बीमारी से भी बदतर है. बेंच ने कहा कि फेसबुक (Facebook) के खिलाफ याचिका बरकरार रखने योग्य नहीं है. इस याचिका में फेसबुक ( Facebook) के खिलाफ कोई आरोप नहीं है, जिसमें उसने आईटी एक्ट, 2021 के तहत अपने वैधानिक दायित्वों को मानने में अनदेखी की हो.
बेंच ने कहा कि इस मामले से जुड़ी एक अधिनियम है, जो शिकायतकर्ता को वैकल्पिक एवं प्रभावी उपाय देता है. वे आपत्तिजनक पोस्ट के संबंध में आईटी एक्ट, 2021 (IT Act, 2021) के अनुसार कदम उठाने को स्वतंत्र है.
रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ फेसबुक बढ़ रहे घृणित और हानिकारक कंटेट से जुड़े एल्गोरिदम को रोकने को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की. ये दो याचिकाकर्ता मोहम्मद हमीम और कौसर मोहम्मद है जो म्यांमार से भाग कर भारत आये हैं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कई वर्षो से रह रहे हैं.
आईटी एक्ट, 2021 के तहत सरकार ने सोशल मीडिया से जुड़े मामलों की जांच के लिए ग्रीवांस एपीलेट कमेटी (GAC) बनाई है जिसका उद्देश्य फेसबुक और ट्विटर सहित अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के यूजर्स की शिकायतों को कोर्ट से बाहर ही निदान करने की है. GAC एक केन्द्रीय बॉडी है, जिसका काम सोशल मीडिया कंटेंट मॉडरेशन पर नियंत्रण रखना है. यह बॉडी जांच करेगी कि जिन सोशल मीडिया पोस्ट के खिलाफ यूजर्स ने शिकायत की है, उन पोस्ट को हटाया गया है या नहीं.