Umar Khalid's Bail Plea: दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस अमित शर्मा ने सोमवार को यूएपीए मामले में उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है. जस्टिस के केस से निकलने के बाद मामले को एक्टिंग चीफ जस्टिस के आदेशानुसार मामले को दूसरी पीठ के सामने भेज दिया गया. अब उमर खालिद की जमानत याचिका पर अगली सुनवाई 24 जुलाई को हो सकती है.
दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस प्रतिभा एम सिंह की अगुवाई वाली डिवीजन बेंच के पास इस मामले को सुनवाई के सूचीबद्ध थी. सुनवाई होती उससे पहले ही खबर आई कि जस्टिस अमित शर्मा ने खुद को इस मामले से अलग कर लिया है. केस से जस्टिस के अलग होने के बाद मामले की आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कराने को लेकर एक्टिंग चीफ जस्टिस के पास ले जाया गया. दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने मामले को दूसरे बेंच के पास भेज दिया है. आसार है कि इस मामले की अगली सुनवाई 24 जुलाई को होगी.
जेएनयू के पूर्व छात्र नेता और दिल्ली दंगों 2020 की बड़ी साजिश के आरोपी उमर खालिद ने यूएपीए मामले में जमानत के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया है. वह दिल्ली दंगों की साजिश के बड़े मामले 2020 के आरोपियों में से एक है.
28 मई को दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने उमर खालिद को नियमित जमानत देने से इनकार कर दिया था. जमानत याचिका खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश का हवाला दिया था, जिसमें कहा गया था कि आरोपी के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं और वह जमानत का हकदार नहीं है.
विशेष न्यायाधीश समीर बाजपेयी ने अपने आदेश में कहा था,
"हाईकोर्ट ने आवेदक के खिलाफ मामले का विश्लेषण किया और अंत में निष्कर्ष निकाला कि आवेदक के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं और यूएपीए की धारा 43डी(5) द्वारा बनाया गया प्रतिबंध आवेदक के खिलाफ पूरी तरह लागू होता है और आवेदक जमानत का हकदार नहीं है."
विशेष न्यायाधीश ने 28 मई को पारित आदेश में कहा,
"यह स्पष्ट है कि उच्च न्यायालय ने आवेदक की भूमिका पर बारीकी से विचार किया है और उसकी इच्छानुसार राहत देने से इनकार कर दिया है."
निचली अदालत ने यह भी कहा
"आवेदक के वकील द्वारा बताए गए वर्नोन के मामले के अनुसार, जमानत पर विचार करते समय, मामले के तथ्यों का कोई 'गहन विश्लेषण' नहीं किया जा सकता है और साक्ष्य के सत्यापन मूल्य का केवल 'सतही विश्लेषण' किया जाना चाहिए और इस प्रकार उच्च न्यायालय ने आवेदक की जमानत देने की प्रार्थना पर विचार करते समय साक्ष्य के सत्यापन मूल्य का पूरा सतही विश्लेषण किया और ऐसा करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि आवेदक के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है,"
अदालत ने कहा था कि जब हाईकोर्ट ने 18.10.2022 के आदेश के तहत आवेदक की आपराधिक अपील को पहले ही खारिज कर दिया है और उसके बाद आवेदक ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अपनी याचिका वापस ले ली, तो इस अदालत द्वारा 24.03.2022 को पारित आदेश अंतिम हो गया है और अब यह अदालत किसी भी तरह से आवेदक की इच्छा के अनुसार मामले के तथ्यों का विश्लेषण नहीं कर सकती और उसके द्वारा मांगी गई राहत पर विचार नहीं कर सकती. निचली अदालत ने उसकी दो जमानत याचिकाएं खारिज कर दी हैं. उसे सितंबर 2020 में गिरफ्तार किया गया था। तब से वह हिरासत में है. उसने नियमित जमानत के लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 437 के साथ गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम, 1967 की धारा 43डी (5) के तहत नियमित जमानत मांगी थी.