Fine On Lawyer:दिल्ली हाईकोर्ट ने एक वकील पर एक लाख रूपये का जुर्माना लगाया है. वकील साहब एक मुकदमे को लेकर अदालत में दोबारा से सुनवाई चाहते थे. जबकि मामले में पहले ही ट्रायल कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट, और फिर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुनाया है. इसके बावजूद वकील साहब द्वारा मामले को उठाने पर जज साहब ने लाख रूपये का जुर्माना भरने के आदेश दिए हैं. अब, दोबारा से इस मामले को शुरू करने पर हाईकोर्ट ने वकील द्वारा नियमों की अनदेखी पाते हुए एक लाख रूपये का जुर्माना दिल्ली हाईकोर्ट लीगल सर्विस कमिटी में भरने का आदेश दिया है.
जस्टिस सी हरि शंकर प्रसाद ने मामले को सुना. बेंच ने माना. एडवोकेट को कानून, न्यायालय की प्रक्रिया से वाकिफ हैं. और चेतावनी देने के बावजूद बार-बार एक ही गलती को बार-बार दोहरा रहें हैं.
बेंच ने कहा,
"ये दलीलें सुनने में लगभग 40 मिनट से अधिक समय लगा है और वर्तमान आदेश को निर्धारित करने में आधा घंटा और लगा. यह न्यायालय के लिए आवेदक के कार्यों के पीछे के उद्देश्यों को बताना उचित नहीं है. हालांकि, न्यायालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस तरह के दुस्साहस और कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग के स्पष्ट प्रयासों को शुरूआत में ही रोका जाए, ताकि ऐसे ही अन्य उतावले मुकदमेबाजों को समान अपराध करने से रोका जा सके."
दिल्ली हाईकोर्ट सीआरपीसी के सेक्शन 340 के तहत मामले की सुनवाई कर रहा था. सेक्शन 340 के तहत, दूसरी बार अपील दायर की गई जिसमें अक्षेम चंद के एक वारिश ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दिया है.
अक्षेम चंद के खिलाफ अंगद राम और सुरेश बाला ने मुकदमा दायर किया था. राम और बाला ने उस संपत्ति के पूर्ण मालिक होने का दावा किया जिसमें उन्होंने चंद और उसके परिवार को लाइसेंसधारी के रूप में रहने की अनुमति दी थी.
मुकदमे का फैसला राम और बाला के पक्ष में सुनाया गया और अक्षेम चंद को जिला न्यायाधीश के साथ-साथ उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दायर अपील में कोई राहत नहीं मिली.
दोबारा से, अक्षेम चंद ने ट्रायल कोर्ट में आवेदन दायर की. आवेदन में कहा गया कि उक्त आदेश डाक्यूमेंटस में छेड़छाड़ करके हासिल किया गया था. ट्रायल कोर्ट ने मामले को खारिज किया. उसके बाद, सीआरपीसी की धारा 340 के तहत, ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दिया. जिसमें सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कानून की अनदेखी करने के मामले में वकील पर जुर्माना लगाया है.
उच्च न्यायालय ने मामले पर विचार किया और कहा कि यह तीसरी बार है जब इस केस को उठाया जा रहा है. जब कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग कानूनी क्षेत्रों से जुड़े सदस्यों के द्वारा किया जाता है, जिन्हें इसका रक्षक और संरक्षक माना जाता हैं, तो अदालत को इन लापरवाही की अनदेखी नहीं कर सकते हैं.
बेंच ने कहा,
" यहां न्यायालय यह विश्वास नहीं कर सकता कि पैक्टिसिंग वकील (जिसने आवेदन किया है) को कानून की जानकारी नहीं है. स्पष्ट रूप से पूरी जानकारी और सचेत अवस्था में, यह जानते हुए कि वह क्या कर रहा है और किस तरह से कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रहा है, आवेदक ने यह वर्तमान आवेदन दायर किया है."
बेंच ने ऐसा कहकर आवेदक वकील को जुर्माने की राशि दिल्ली हाईकोर्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी (DHLSC) में जमा करने का आदेश दिया है.
बेंच ने आगे कहा,
"जब तक आवेदक द्वारा लागत का भुगतान करने का प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया जाता, तब तक रजिस्ट्री द्वारा वर्तमान आदेश की समीक्षा के लिए किसी भी आवेदन पर विचार नहीं किया जाएगा."
बेंच ने रजिस्ट्री को आदेश देते हुए कहा कि बेंच ने जुर्माने की राशि मिलने तक इस केस में सुनवाई पर रोक लगाई है.