आज दिल्ली हाईकोर्ट ने अप्राकृतिक यौन संबंधों को भारतीय न्याय संहिता में शामिल करने को लेकर छह महीने का समय दिया है. दिल्ली हाईकोर्ट ने ये निर्देश एक जनहित याचिका पर सुनवाई करने के दौरान दी. पीआईएल में दावा किया गया कि एक जुलाई से लागू नए अपराधिक कानून में अप्राकृतिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं किया गया है. याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को आपसी सहमति के बिना बनाये गए अप्राकृतिक यौन सबंध (Unnatural sex) के लिए सज़ा के प्रावधान को शामिल करने की मांग पर 6 महीने में फैसला लेने को कहा है.
दिल्ली हाईकोर्ट में एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गोडेला की खंडपीठ ने केन्द्र सरकार को निर्देश दिया. कोर्ट ने इस मसले को लेकर याचिका दायर करने वाले शख्श को कहा है कि वो सरकार को ज्ञापन दे और सरकार जल्द इस पर फैसला ले. आज सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि इस मसले पर विचार विमर्श चल रहा है.इस मसले पर सांसदों समेत सभी स्टेकहोल्डर्स से मशविरा ज़रूरी है. लिहाजा वक़्त लग रहा है. दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि ये गम्भीर मसला है. सरकार को इस पर जल्द फैसला लेने की ज़रूरत है. सरकार चाहे तो इस पर अध्यादेश ला सकती है.
दरअसल इससे पहले IPC की धारा377 के तहत अप्राकृतिक यौन सबंध के लिए ( पुरुष, स्त्री, जानवर के साथ ) 10 साल या उम्रकैद तक की सज़ा का प्रावधान था. साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने नवतेज सिंह जौहर मामले में दिए फैसले में सेक्शन 377 के तहत इस तरह के यौन सम्बंध को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया. हालांकि इसके बावजूद बिना सहमति के बने इस तरह के यौन सम्बंध में ये अपराध बना रहा. इस साल जुलाई में आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता ने ले ली. नए क़ानून में अप्राकृतिक यौन उत्पीड़न को अपराध के दायरे में लाने के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है. इसके चलते कोई पुरुष या ट्रांसजेंडर के साथ कोई अगर उसकी मर्जी के बिना सम्बंध बनाता है ,तो भी वो सज़ा से बच सकता है.