दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) से पूछा कि कलर ब्लाइंडनेस व्यक्ति को ड्राइवर कैसे नियुक्त किया गया? सार्वजनिक सुरक्षा पर विचार क्यों नहीं किया गया? जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने इस तथ्य को दुर्भाग्यपूर्ण बताया कि डीटीसी ड्राइवर और 100 अन्य लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रही, जिनकी चिकित्सा स्थिति समान थी और जिन्हें गुरु नानक आई सेंटर की रिपोर्ट के आधार पर नियुक्त किया गया था.
कोर्ट ने कहा, "याचिकाकर्ता विभाग की ओर से अपने ड्राइवर की नियुक्ति में इस तरह की लापरवाही देखना इस अदालत के लिए बहुत निराशाजनक है."
क्या है पूरा मामला?
2011 में एक दुर्घटना के बाद ड्राइवर (प्रतिवादी) की बर्खास्तगी कर दी गई. मामले में जांच के दौरान पता चला कि ड्राइवर कलर ब्लाइंडनेस है. जब ये सवाल सामने आया कि कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित व्यक्ति को ड्राइवर के रूप में कैसे नियुक्त किया जा सकता है, डीटीसी ने अदालत को बताया कि ड्राइवर ने गुरु नानक अस्पताल से उसे फिट घोषित करते हुए एक मेडिकल सर्टिफिकेट जमा किया था.
ये भी बताया गया कि इसी प्रकार कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित 100 से अधिक लोगों को नियुक्त किया गया, जिसके चलते अप्रैल 2013 में एक स्वतंत्र मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया.
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने कहा कि ड्राइवर द्वारा प्रस्तुत मेडिकल प्रमाणपत्र पर भरोसा करना डीटीसी की ओर से गलत कार्रवाई थी, जबकि उसके अपने चिकित्सा विभाग द्वारा जारी प्रमाणपत्र गुरु नानक आई सेंटर की रिपोर्ट के विपरीत था.
कोर्ट ने टिप्पणी की, ये बहुत भयावह स्थिति है कि ड्राइवर को डीटीसी में ड्राइवर के रूप में नियुक्त किया गया और 2008 से 2011 के बीच तीन साल के लिए बसें चलाने की भी अनुमति दी गई.
कोर्ट ने इस मामले को बेहद गंभीर बताया. और कहा कि डीटीसी को ये सुनिश्चित करने के लिए उचित देखभाल और सावधानी से काम करना चाहिए कि उसके ड्राइवर इस पद के लिए सभी पहलुओं में फिट हैं.
ऐसे में कोर्ट ने इस बात से अवगत कराने को कहा कि ड्राइवर की नियुक्ति क्यों और किन परिस्थितियों में की गयी.
इस टिप्पणियों के साथ हाईकोर्ट ने दिल्ली परिवहन निगम को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया.