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क्या मेधा पटकर को एक लाख रुपये का जुर्माना भरने की डेट में मिलेगी छूट? राहत के लिए Delhi HC ने सेशन कोर्ट जाने को कहा

एक लाख जुर्माने देने के फैसले पर रोक लगाने से दिल्ली हाई कोर्ट ने इंकार करते हुए कहा कि आप पहले ट्रायल कोर्ट के आदेश का पालन करें, फिर मैं आपके आवेदन पर विचार करूंगी. अंतिम दिन अदालत में न आएं.

VK Saxena, Medha Patkar

Written by Satyam Kumar |Published : April 22, 2025 1:35 PM IST

दिल्ली हाई कोर्ट ने कार्यकर्ता मेधा पाटकर को एक लाख रुपये के जुर्माने की अदायगी से संबंधित सज़ा के स्थगन हेतु सत्र न्यायालय का रुख करने को कहा है. यह मामला उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना द्वारा दायर मानहानि के मुकदमे से संबंधित है. दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने 23 साल पहले गुजरात में एक गैर-सरकारी संगठन का नेतृत्व करते हुए मेधा पाटकर के खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज कराया था. इस मामले में मजिस्ट्रेट अदालत ने मेधा पाटकर जुलाई 2024 में पांच महीने की साधारण कैद और 10 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी. बाद में सत्र अदालत ने उन्हें अच्छे आचरण पर आधारित परिवीक्षा पर रिहा कर दिया और एक लाख रुपये जुर्माना जमा करने की शर्त रखी.

राहत के लिए पहले सेशन कोर्ट जाएं: HC

वहीं, मेधा पाटकर ट्रायल कोर्ट को सजा के क्रियान्वयन को स्थगित करने की मांग याचिका पर जस्टिस शालिंदर कौर ने आवेदन को सुनने में रुचि नहीं दिखाई. उनके वकील ने कहा कि वह सत्र न्यायालय में इस मामले को लेकर जाएंगे. न्यायाधीश ने कहा कि आप पहले ट्रायल कोर्ट के आदेश का पालन करें, फिर मैं आपके आवेदन पर विचार करूंगी. अंतिम दिन अदालत में न आएं. इसके बाद जस्टिस ने मामले को अगली सुनवाई (19 मई) के लिए टाल दिया है. हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील की बात को रिकॉर्ड किया और कहा कि आवेदन को कानून के अनुसार ट्रायल कोर्ट द्वारा विचार किया जाना चाहिए.

इससे पहले सत्र अदालत ने मेधा पाटकर पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है, जो वादी वी.के. सक्सेना को दिया जाना है. हाई कोर्ट के निर्देशानुसार, उन्हें यह राशि जमा करने के लिए पहले सत्र अदालत से संपर्क करना होगा. जुर्माना जमा करने के बाद उन्हें 25,000 रुपये के प्रोबेशन बॉन्ड पर हस्ताक्षर करने होंगे, जिसके बाद उन्हें रिहा किया जाएगा.

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क्या है मामला?

मानहानि का मामला 2001 में शुरू हुआ था जब वीके सक्सेना ने मेधा पाटकर के खिलाफ एक टेलीविजन इंटरव्यू और एक प्रेस बयान में कथित रूप से अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए दो मानहानि के मुकदमे दायर किए थे. उपराज्यपाल वीके सक्सेना उस समय अहमदाबाद स्थित एनजीओ नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे. यह मामला मेधा पाटकर द्वारा 2000 में सक्सेना के खिलाफ दायर एक मुकदमे से जुड़ा हुआ था जिसमें उन्होंने सक्सेना पर उनके और नर्मदा बचाओ आंदोलन के खिलाफ मानहानिकारक विज्ञापन प्रकाशित करने का आरोप लगाया था.