आज दिल्ली हाई कोर्ट ने पाकिस्तानी महिला की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. पाकिस्तानी मूल की इस महिला ने अपनी याचिका में भारत में लंबी अवधि के वीजा के लिए उसके आवेदन पर विचार करने की मांग की थी. इस केस में याचिकाकर्ता शीना नाज का विवाह एक भारतीय नागरिक से हुआ है और उसने 23 अप्रैल को लंबी अवधि के वीजा के लिए आवेदन किया था.
पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद, केंद्र सरकार ने 24 अप्रैल को पाकिस्तानी नागरिकों को वीजा सेवाएं निलंबित करने का फैसला लिया और उन्हें 27 अप्रैल से पहले भारत छोड़ने का निर्देश दिया था. पहलगाम हमले के बाद भारत सरकार ने विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 3 (1) के तहत पाकिस्तानी नागरिकों को जारी किए गए वीज़ा सेवाओं को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का निर्णय लिया है. वहीं, केन्द्र द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, 27 अप्रैल 2025 से, चिकित्सा, दीर्घकालिक, राजनयिक और आधिकारिक वीज़ा को छोड़कर, पाकिस्तानी नागरिकों को जारी सभी मौजूदा वैध वीज़ा रद्द कर दिए गए हैं. यह आदेश पाकिस्तानी नागरिकों को जारी दीर्घकालिक वीज़ा (LTVs) और राजनयिक और आधिकारिक वीज़ा पर लागू नहीं होगा. पाकिस्तानी नागरिकों को जारी चिकित्सा वीज़ा केवल 29 अप्रैल 2025 तक ही मान्य रहेगा और अब से कोई नया वीज़ा जारी नहीं किया जाएगाय इसी के मद्देनजर नाज ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अपने लंबी अवधि के वीजा आवेदन पर विचार करने के साथ-साथ अपने रेजिडेंशियल परमिट को को निलंबित न किए जाने की मांग की थी.
जस्टिस सचिन दत्ता ने याचिका को नामंजूर करते हुए कहा कि सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर यह फैसला लिया है. इस फैसले की न्यायिक समीक्षा की ज़रुरत नहीं है. केन्द्र सरकार के फैसले की न्यायिक समीक्षा से इंकार करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के हंस मुलर बनाम अधीक्षक, प्रेसीडेंसी जेल, कलकत्ता (1955) मामले का हवाला दिया, जिसके अनुसार विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 3(1) के तहत जारी आदेश की न्यायिक समीक्षा प्रथम दृष्टया, गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों से जारी किए गए इस आदेश की न्यायिक समीक्षा उचित नहीं मानी गई है.
जस्टिस ने कहा,
"विदेशी अधिनियम केंद्र सरकार को विदेशियों को भारत से निष्कासित करने का अधिकार देता है. यह सरकार को पूर्ण और असीमित विवेकाधिकार प्रदान करता है और चूंकि संविधान में इस विवेकाधिकार को बाधित करने का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए निष्कासित करने का अप्रतिबंधित अधिकार बना रहता है."
वर्तमान स्थिति को देखते हुए, अदालत ने याचिका पर विचार करने की अपनी अनिच्छा व्यक्त की, जिसके बाद याचिकाकर्ता के वकील ने निर्देशों के अनुसार, याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी.