दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार, दिल्ली नगर निगम (एमसीडी), दिल्ली पुलिस और भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) को राष्ट्रीय राजधानी में शुद्ध दूध की आपूर्ति सुनिश्चित करने और मवेशियों को दिए जाने वाले नकली हार्मोन के इस्तेमाल को रोकने में विफल रहने के लिए फटकार लगाई.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने कहा कि सरकारी अधिकारियों ने यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ नहीं किया है कि राजधानी में चल रही डेयरियां स्वच्छता और सफाई से संबंधित दिशा-निर्देशों का पालन कर रही हैं.
खंडपीठ ने टिप्पणी की,
"वह यह बर्दाश्त नहीं कर सकती कि मवेशी लैंडफिल साइटों के पास खतरनाक कचरा खाएं और उनका दूध बच्चों को पिलाया जाए या मिठाई और चॉकलेट बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाए. आज, प्रशासन ने आंखें मूंद ली हैं जैसे कि डेयरियां हैं ही नहीं. यह दूध है जिसका इस्तेमाल मिठाई और चॉकलेट में किया जाता है और यह हमारे भोजन में जा रहा है. किसी भी वैधानिक प्राधिकरण द्वारा उनकी जांच नहीं की जा रही है... हम आश्चर्यजनक कहानियां सुन रहे हैं. मवेशियों को दूसरी मंजिल पर ले जाया गया है और फिर वे कभी नीचे नहीं आते. क्रूरता की कल्पना कीजिए.कल्पना कीजिए कि वे कितने कचरे और मलमूत्र के बीच रहते हैं. ऑक्सीटोसिन एक प्रतिबंधित दवा है, लेकिन यह इन डेयरी कॉलोनियों में बड़े पैमाने पर पाई जाती है। कृपया अपने अधिकारियों से पूछें कि उन्होंने क्या किया है? इन अधिकारियों को वेतन क्यों मिल रहा है? जिम्मेदारी तय करने की जरूरत है."
मुख्य सचिव कई वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए कार्यवाही में शामिल हुए थे।
न्यायालय अधिवक्ता सुनयना सिब्बल और अन्य द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में नौ डेयरी कॉलोनियों को अन्य उचित स्थानों पर स्थानांतरित करने के निर्देश देने की मांग की गई थी.
पीठ ने चेतावनी दी कि यदि दिल्ली पुलिस नकली ऑक्सीटोसिन (मवेशियों में दुरुपयोग किया जाने वाला हार्मोन) की बिक्री को रोकने में असमर्थ है, तो न्यायालय यह कार्य केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपने पर विचार करेगा। “यदि पुलिस अक्षम महसूस कर रही है, तो हम इसे सीबीआई को सौंप देंगे. कृपया समझें कि आप किस दिशा में जा रहे हैं. यह [दूषित दूध] छोटे बच्चों और शिशुओं को प्रभावित कर सकता है. पुलिस को कुछ तत्परता दिखानी चाहिए.”
न्यायालय ने मुख्य सचिव से कहा कि वे व्यक्तिगत रूप से कुछ डेयरी कॉलोनियों का दौरा करें और स्थिति का जायजा लें, क्योंकि सरकारी अधिकारी अपने काम में विफल रहे हैं. “मुझे लगता है, मुख्य सचिव साहब, आपको इनमें से एक या दो डेयरियों का दौरा करने के लिए कुछ समय निकालना चाहिए. इससे आपको फीडबैक मिलेगा. आपके अधिकारी जमीनी स्तर पर नहीं जा रहे हैं और उन्हें पता ही नहीं है कि क्या हो रहा है. मुझे यह भी नहीं पता कि इन क्षेत्रों में उनके प्रवेश की अनुमति है या नहीं. कृपया इन स्थानों का दौरा करें."
पीठ ने टिप्पणी की,
"एक बार जब आप स्पष्ट संदेश भेज देंगे, तो आपके अधिकारी खुद ही दौरा करना शुरू कर देंगे."
पीठ ने शहर की डेयरी कॉलोनियों में रखे गए मवेशियों की संख्या के बारे में सटीक आंकड़े देने में सरकार की विफलता पर भी नाराजगी व्यक्त की. दिल्ली सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि नौ डेयरी कॉलोनियों में लगभग 30,000 मवेशी हैं, जबकि केंद्र सरकार के पशुपालन विभाग की एक रिपोर्ट से पता चला है कि यह संख्या तीन लाख से अधिक है.
अदालत ने मुख्य सचिव को एक विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया, जिसमें यह दर्शाया गया हो कि सरकार किस तरह से यह सुनिश्चित करने की योजना बना रही है कि दिल्ली की सभी डेयरियों के पास अनिवार्य लाइसेंस हों और मवेशी कचरे को न खाएं. अदालत ने कहा कि प्रस्तुत रिपोर्ट में यह भी बताया जाएगा कि सरकार गाजीपुर और भलस्वा के लैंडफिल साइटों के पास डेयरियों से निकलने वाले दूध को दूषित न करने के लिए क्या कदम उठाएगी और ऑक्सीटोसिन के स्रोत का पता लगाने के लिए किए गए प्रयासों के बारे में भी जानकारी देगी.
इसके अलावा, पीठ ने कहा कि वह मदनपुर खादर डेयरी के बारे में निर्देश पारित करेगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह वैधानिक ढांचे का अनुपालन करती है और इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में माना जाएगा. इसके बाद कोर्ट ने एफएसएसएआई को दिल्ली में दूध और अन्य उत्पादों की जांच बढ़ाने का आदेश दिया, खास तौर पर लैंडफिल साइटों के पास. मामले की अगली सुनवाई 27 मई को होगी.