हाल ही में दिल्ली की द्वारका अदालत ने संदेह के लाभ (Benifits Of Doubt) का हवाला देते हुए दहेज हत्या के आरोपों से एक व्यक्ति को बरी कर दिया है. अदालत ने फैसले में कहा कि सच हो सकता है और सच होना चाहिए के बीच एक बहुत अंतर है. साल 2011 के दहेज को हत्या के मामले में अदालत ने आरोपी को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन के पास केवल इतना सबूत है कि पत्नी की आत्महत्या करने से एक दिन पहले दोनों के बीच झगड़ा हुआ था. अदालत ने अब आरोपी को रिहा करने का फैसला लिया है.
द्वारका अदालत में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) शरद गुप्ता ने आरोपी सतेंद्र गौतम को धारा 498 ए आईपीसी (दहेज के लिए क्रूरता) और धारा 304 बी आईपीसी (दहेज हत्या) के तहत अपराधों से बरी कर दिया. अदालत ने फैसला सुनाया कि अभियोजन पक्ष आरोपी सतेंद्र गौतम के खिलाफ अपने मामले को पुख्ता या ठोस सबूत पेश करके साबित करने में विफल रहा. अभियोजन पक्ष का मामला सच हो सकता है लेकिन आपराधिक न्यायशास्त्र कहता है कि अभियोजन पक्ष का मामला सच होना चाहिए.
अदालत ने कहा,
"सच हो सकता है और सच होना चाहिए के बीच एक बड़ी दूरी है. यह आपराधिक न्यायशास्त्र का एक प्रमुख सिद्धांत है कि एक आरोपी को निर्दोष मान कर मुकदमा चलाया जाए. अभियोजन पक्ष पर अभियुक्त के अपराध को संदेह से परे साबित करने का दायित्व है. अभियोजन पक्ष का कानूनी दायित्व है कि वह अपराध के प्रत्येक घटक को संदेह से परे साबित करे, जब तक कि किसी कानून द्वारा अन्यथा ऐसा प्रावधान न किया गया हो. यह सामान्य दायित्व कभी नहीं बदलता, यह हमेशा अभियोजन पक्ष पर रहता है."
अदालत ने 29 जुलाई को दिए फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष यह दिखाने के लिए कोई भी सामग्री रिकॉर्ड पर नहीं ला पाया है कि अभियुक्त ने किसी उकसावे या सक्रिय कार्य या चूक से मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाया था. अभियोजन पक्ष का कहना इतना है कि मृतक की मृत्यु से एक दिन पहले मृतक और अभियुक्त के बीच झगड़ा हुआ था.
अदालत ने कहा,
पति-पत्नी के बीच झगड़े घरेलू झगड़ों का एक सामान्य हिस्सा हैं और रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं. यह नहीं कहा जा सकता कि मृतक के साथ झगड़ा करके अभियुक्त ने पूनम शर्मा को आत्महत्या के लिए उकसाने का इरादा किया था.यह विशेष रूप से इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि मृतक के दोस्त की गवाही के अलावा रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है और यहां तक कि उसने अपनी मुख्य परीक्षा में कहा कि उसे लगा कि यह पति-पत्नी के बीच एक सामान्य झगड़ा था.
अदालत ने सबूतों के आधार पर फैसला सुनाया कि आरोपी के खिलाफ धारा 306 के तहत अपराध भी नहीं बनता है.
साल 2011 में आरोपी गौतम पर नजफगढ़ पुलिस स्टेशन में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी. एफआईआर उसकी पत्नी की मां (सास) कमलेश देवी की शिकायत पर दर्ज की गई थी, जिन्होंने आरोप लगाया था कि उनकी बेटी ने गौतम द्वारा उत्पीड़न और दहेज की मांग के कारण आत्महत्या कर ली.
आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोप सत्य नहीं हैं और उन्हें इस मामले में झूठा फंसाया गया है. आरोपी ने कहा कि उसकी पत्नी की मृत्यु के बाद, उसे पता चला कि उसके माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्य उसके और आरोपी के बीच अंतरजातीय विवाह के लिए फोन कॉल के जरिए उसे परेशान करते थे.