Judgement Order: हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने जजमेंट आर्डर को लेकर बड़ी टिप्पणी की है. उच्च न्यायालय ने कहा कि जजमेंट आर्डर तैयार होने से पहले अदालत फैसले को जाहिर करना दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के सेक्शन 353 का उल्लंघन है. CrPC की धारा 353 जजमेंट सुनाने के तरीके को बताती है जिसमें फैसले लिखे जाने, प्रिसाइडिंग ऑफिसर के साइन होने के बाद ही आरोपी को अदालत के फैसले से अवगत कराने का प्रावधान है. अदालत ने ट्रायल कोर्ट द्वारा जजमेंट आर्डर तैयार होने से पहले ही अपने फैसले अवगत कराने को लेकर नाराजगी जाहिर की है. बता दें, मामले में व्यक्ति का आरोप था कि ट्रायल कोर्ट ने जजमेंट आर्डर तैयार होने से पहले ही उसे दोषसिद्धी के बारे में बताया था.
जस्टिस नवीन चावला की बेंच ने जजमेंट सुनाने को लेकर निर्देश जारी की हैं. बेंच ने स्पष्ट किया है कि प्रिसाइडिंग ऑफिसर भविष्य में ऐसी गलती ना करें. बेंच ने सभी जिला अदालतों के चीफ और सेशन जजों को निर्देश जारी किए हैं कि जजमेंट आर्डर लिखे जाने से पहले अदालत के आदेश को उजागर या बाहर नहीं करना चाहिए. जजमेंट आर्डर लिखे जाने से पहले आदेश को बताना CrPC के सेक्शन 353 के निर्देशों का उल्लंघन है.
मुन्ना सिंह (याचिकाकर्ता) ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की. याचिका में उन्होंने कहा कि ट्रायल कोर्ट के पास फैसला सुनाने वक्त जजमेंट आर्डर की कॉपी नहीं थी. अदालत ने उन्हें 18 मई के दिन दोषी ठहराया लेकिन दोषसिद्धि आर्डर की कॉपी 22 मई को उपलब्ध कराई. याचिका में ये भी कहा गया कि 18 मई के दिन उन्होंने आवेदन देकर फैसले की कॉपी की मांग की, जिसे अदालक ने रिकार्ड पर नहीं लिया. और उसे मौखिक रूप से निर्देश दिया गया कि फैसले की कॉपी 23 मई तक उपलब्ध होगी.
हालांकि, दिल्ली उच्च न्यायालय ने जजों को निर्देश जारी करते हुए इस याचिका को खारिज कर दिया है.