नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने COVID-19 से बचाव के लिए तैयार की गई स्वदेशी Covaxin को विकसित करने में किए गए निवेश और खर्च को लेकर आरटीआई के तहत जानकारी मांगने के मामले में भारत बायोटेक और केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) को पक्षकार बनाने के आदेश दिए है.
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि भारत बायोटेक और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय इस मामले में अहम प्रतिवादी है इसलिए इस मामले में आगे बढने के लिए इन दोनो को पक्षकार बनाना जरूरी है.
आरटीआई के तहत Covaxin को विकसित करने में किए गए निवेश और खर्च को लेकर सरकार सहित सभी विभागों ने जानकारी देने से इंकार कर दिया था. जिसके बाद केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने भी व्यापार के रहस्य, बौद्धिक संपदा और भारत की संप्रभुता और अखंडता का हवाला देते अपील को खारिज कर दिया.
कोरोना वायरस की स्वदेश निर्मित वैक्सीन Covaxin देश की सबसे महंगी वैक्सीन रही है. भारत बायोटेक लिमिटेड की इस वैक्सीन की कीमत को सरकार ने निजी अस्पतालों के लिए 1410 रुपये प्रति डोज तक तय की थी.
सुनवाई के दौरान भारत बायोटेक की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि मामले के एक याचिकाकर्ता एडवोकेट टी प्रशांत रेड्डी को केंद्र सरकार ने "भारत के हितों के खिलाफ काम करने" के लिए फटकार लगाई है और वह COVID-19 महामारी के बारे में भी गलत सूचना फैला रहे हैं.
भारत बायोटेक के अधिवक्ता के तर्को का विरोध करते हुए याचिकाकर्ता एडवोकेट टी प्रशांत रेड्डी ने अदालत को बताया कि उनके द्वारा की गई टिप्पणियां गाम्बिया में बच्चों की मौत के संबंध में थीं, जिन्होंने भारतीय खांसी की दवाई पी थी, न कि COVID-19 महामारी या टीके के बारे में थी.
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने इस पर भारत बायोटेक को निर्देश दिए है कि उनके द्वारा रखे गए अपने तर्क के पक्ष में याचिकाकर्ता रेड्डी को केन्द्र द्वारा किए गए नोटिस को अदालत के रिकॉर्ड पर रखें.
सुनवाई के दौरान अन्य याचिकाकर्ता सकुमार ने अदालत से अनुरोध किया कि इस मामले से जुड़े दस्तावेजों को केन्द्रीय चुनाव आयोग ने देखे बिना ही इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि इन दस्तावेजों में व्यापारिक रहस्य शामिल थे, ऐसे में इन दस्तावेजों को अदालत की निगरानी में परीक्षण के लिए रखे जाए.
हाईकोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई की अगली तारीख 16 मार्च तय करते हुए कहा कि वे इस मामले पर भी अगली सुनवाई पर विचार करेगी.
याचिकाकर्ता एडवोकेट टी प्रशांत रेड्डी ने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) से COVID-19 टीकों के खरीद आदेश और अग्रिम खरीद आदेश के बारे में विवरण मांगा था.
आरटीआई के तहत रेड्डी ने केन्द्र सरकार के मिशन कोविड सुरक्षा' के तहत दो निजी संस्थाओं के लिए जारी किए गए धन के लिए किए गए समझौतों के साथ साथ आईसीएमआर और भारत बायोटेक के बीच अनुसंधान सहयोग समझौते और टीके से संबंधित कुल लागत और निवेश से जुड़ी जानकारी भी मांगी.
इस मामले में आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(ए) और 8(1)(डी) का हवाला देते हुए ICMR ने उन्हें ये सभी सूचनाए देने से इंकार कर दिया गया.
बाद में केन्द्रीय सूचना आयोग ने भी सूचना देने से इनकार करने को सही बताया.
केन्द्रीय सूचना आयोग के आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर चुनौती दी. याचिका में कहा गया कि आरटीआई अधिनियम के तहत भारत बायोटेक के साथ वैक्सीन सहयोग समझौते का खुलासा करने के लिए आईसीएमआर का व्यापक इनकार अहंकारी है, यह देखते हुए कि Covaxin के विकास में सार्वजनिक धन और संसाधनों की पर्याप्त मात्रा खर्च की गई थी.