नई दिल्ली: Supreme Court ने देश में अदालतों द्वारा दि जाने वाली सजा को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसले दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संवैधानिक अदालतें बिना किसी छूट के निश्चित अवधि के लिए उम्रकैद की सजा दे सकती हैं, यहां तक कि उन मामलों में भी जहां मौत की सजा नहीं दी गई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यहां तक कि अगर मामला "दुर्लभतम से दुर्लभ" मामले की श्रेणी में भी नहीं आता है, तो मौत की सजा देने के लिए, एक संवैधानिक न्यायालय निश्चित अवधि के आजीवन कारावास की सजा दे सकता है.
Justice Abhay S Oka और Justice Rajesh Bindal की पीठ ने बेंगलुरू के Shiva Kumar @ Shiva की ओर से दायर अपील पर सुनवाई के बाद दिया है.
अपीलकर्ता Shiva Kumar @ Shiva एक कैब ड्राईवर था जिस पर बेंगलुरु में आधी रात को आफिस से घर ले जाते समय एक आईटी महिला कर्मचारी के साथ बलात्कार करने के बाद हत्या का अपराध साबित हुआ था.
बेंगलुरु की सत्र अदालत ने इस मामले में ट्रायल के बाद उसे जिंदा रहने तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. ट्रायल कोर्ट ने निर्देश दिया था कि अपीलकर्ता को अपने शेष जीवन के लिए कारावास भुगतना होगा.अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि जब तक कि वह कम से कम 30 साल की सजा नहीं काट लेता, तब तक वह छूट का हकदार नहीं होगा.
सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करते हुए दोषी ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए कहा कि सत्र न्यायालय शेष जीवन के लिए ऐसी सजा नहीं दे सकता है.
अपील में कहा गया कि मौत की सजा को कम करते हुए केवल एक संवैधानिक न्यायालय द्वारा बिना छूट के एक निश्चित अवधि की सजा का आदेश दिया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ता के तर्को को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि संवैधानिक अदालतें बिना किसी छूट के निश्चित अवधि के लिए उम्रकैद की सजा दे सकती हैं, यहां तक कि ऐसे मामले में जहां मृत्युदंड नहीं लगाया गया है या प्रस्तावित नहीं है, संवैधानिक न्यायालय हमेशा एक संशोधित या निश्चित अवधि की सजा देने की शक्ति का प्रयोग कर सकते हैं.
पीठ ने कहा कि संवैधानिक अदालतों की ये शक्ति आईपीसी की धारा 53 में "द्वितीय" के अनुसार आजीवन कारावास की सजा का निर्देश देता है. जिसमें कहा गया है कि चौदह वर्ष से अधिक की एक निश्चित अवधि का होगा. पीठ ने कहा कि यह सजा बीस वर्ष, तीस वर्ष और इसी तरह की हो सकती है.
अपीलकर्ता द्वारा अपील में तर्क दिया गया कि अपराध के समय उसकी आयु केवल 22 वर्ष थी और उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं था, इसलिए अदालत उसकी सजा के मामले में उदारता अपनाए.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में अपीलकर्ता द्वारा किए गए अपराध को अंतरात्मा को झकझोर देने वाला बताते हुए कहा कि मामले के तथ्य "किसी भी अदालत की अंतरात्मा को झकझोर देंगे" कि एक नामी कंपनी में खुशी-खुशी काम करने वाली एक विवाहित महिला की जिंदगी इस क्रूर तरीके से समाप्त कर दी गई.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा यह मामला आईटी सेंटर पर तकनीकी नौकरियों में काम करने वाली महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ा है, जहां देर से काम करना आम बात है.
पीठ ने कहा कि बेंगलुरु को भारत की सिलिकॉन वैली के रूप में जाना जाता है,इनमें से कुछ कंपनियों के ग्राहक विदेशों में हैं और यही कारण है कि कंपनी के कर्मचारी रात में काम करते हैं। ऐसी कंपनियों में बड़ी संख्या में कर्मचारी सदस्य महिलाएं हैं।"
पीठ ने कहा कि यह मामला ऐसा है जहां किसी भी तरह से अपराधी के लिए उदारता नहीं दिखाई जा सकती. पीठ ने यह भी कहा कि उसे इस मामले में संवैधानिक अदालत को कम से कम तीस साल के लिए उम्रकैद की सजा निर्धारित करके एक विशेष संशोधित सजा देने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए.