नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले में यह कहा है कि इस देश का संविधान किसी को भी ऐसी स्थिति में नहीं डालना चाहता है जहां नागरिक को 'शिक्षा के अधिकार' (Right to Education) और 'प्रजनन स्वायत्तता को उपयोग करने के अधिकार' (Right to Exercise Reproductive Autonomy) के बीच चुनना पड़े। यह बात हाईकोर्ट ने कॉलेज स्टूडेंट्स के लिए मटर्निटी लीव के एक मामले पर कही है।
हाल ही में, दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) में कॉलेज स्टूडेंट्स को मटर्निटी लीव मिलनी चाहिए या नहीं- इस मुद्दे से जुड़ा एक मामला सामने आया। अदालत ने इस पर आदेश देते समय इस बात को हाइलाइट किया है कि देश के किसी भी नागरिक को 'शिक्षा के अधिकार' और 'प्रजनन स्वायत्तता को उपयोग करने के अधिकार' के बीच कभी किसी एक को न चुनना पड़े।
दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में स्टूडेंट को मटर्निटी लीव की अनुमति दी है.
दिल्ली हाईकोर्ट में आया मामला
दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पुरुषेंद्र कुमार कौरव (Justice Purushaindra Kumar Kaurav) की अदालत में दरअसल चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी (Chaudhary Charan Singh University) की एक छात्रा की याचिका आई जिन्हें उनके कॉलेज ने मटर्निटी लीव देने से मना कर दिया था।
याचिकाकर्ता इस यूनिवर्सिटी में एक एम एड (MEd) की एक छात्रा हैं जिन्होंने 80% थ्योरी क्लासेज अटेन्ड करने के बदले में 59 दिनों की मटर्निटी लीव मांगी है।
न्यायाधीश पुरुषेंद्र कौरव ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए यूनिवर्सिटी से यह कहा है कि वो एक बार फिर इस छात्रा की छुट्टियों की एप्लिकेशन पर विचार करें और अगर उनके इस अनुरोध को सुना जाता है, तो उन्हें थ्योरी क्लासेज में 80% अटेंडेंस पूरी करनी होगी।
अगर ऐसा होता है तो उन्हें बिना किसी देरी के परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाएगी। इस तरह, छात्रा की भी बात रख ली जाएगी और संस्थान के नियमों का भी अपमान नहीं होगा।