नई दिल्ली: छावला में युवती के साथ गैंगरेप कर उसकी हत्या करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस और पीड़ित परिवार की ओर से दायर रिव्यू पीटीशन को खारिज कर दिया है.
CJI DY Chandrachud, Justice S Ravindra Bhat और Justice Bela M Trivedi की पीठ ने कहा कि इस फैसले में उन्हें कोई खामी नजर नहीं आती है. इसलिए पुनिर्विचार का कोई औचित्य नहीं है.
पीड़ित परिवार और दिल्ली पुलिस ने फांसी की सजा पाए तीनों दोषियों को रिहा करने के फैसले पर पुर्नविचार करने की मांग की थी.
पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि उपलब्ध रिकॉर्ड को देखने पर हमें अपने फैसले में कोई खामी नजर नहीं आती. लिहाजा पुर्नविचार की मांग वाली अर्जियों को खारिज किया जाता है.
दिल्ली के छावला इलाके में एक लड़की की गैंगरेप और फिर बेहद क्रूरता से हत्या कर दी गई थी. यह मामला 19 साल की एक लड़की की मौत से जुड़ा है, जिसका अपहरण कर लिया गया था और कथित तौर पर दिल्ली के छावला में लाल रंग की टाटा इंडिका में जबरदस्ती ले जाया गया था.बाद में उसका शव रोदई गांव के खेत में मिला था.
इस मामले में पुलिस ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया था, जब उनमें से एक हैरान-परेशान दिख रहा था और कथित तौर पर कार चला रहा था. दिल्ली की निचली अदालत ने तीनो आरोपियों को 2014 में गैंगरेप, हत्या और सबूत मिटाने के अपराधों के लिए दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई थी.
इस मामले में निचली अदालत से लेकर दिल्ली HC ने दोषियों को फांसी की सज़ा मुक़र्रर की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 7 नवंबर 2022 को दिए फैसले में पुलिस की जांच और ट्रायल पर सवाल उठाते हुए तीनों दोषियों को बरी कर दिया था.
पिछले साल 7 नवंबर 2022 को दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में पुलिस की जांच और ट्रायल पर सवाल उठाते हुए संदेह का लाभ देते हुए दोषियों को बरी कर दिया गया था. इस फैसले के खिलाफ पीड़ित् परिवार और दिल्ली पुलिस ने रिव्यू याचिका दायर की.
सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ ने इस फैसले को 2 मार्च को ही पारित कर दिया था, लेकिन इसे मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट वेबसाईट पर साझा किया गया.
CJI DY Chandrachud, Justice S Ravindra Bhat और Justice Bela M Trivedi की पीठ ने कहा कि समीक्षा याचिकाओं के बैच में से किसी भी दलील ने रिकॉर्ड के सामने किसी भी त्रुटि की ओर इशारा नहीं किया, जो कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुर्नविचार के लिए आधार तैयार कर सके.
पीठ ने कहा कि "निर्णय और रिकॉर्ड पर मौजूद अन्य दस्तावेजों पर विचार करने के बाद, हमें इस अदालत द्वारा पारित पूर्वोक्त निर्णय की समीक्षा की आवश्यकता वाले रिकॉर्ड के सामने कोई तथ्यात्मक या कानूनी त्रुटि नहीं मिली है"
पीठ ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया है कि इस मामले के एक अभियुक्त ने सुप्रीम कोर्ट से बरी होने और जेल से रिहा होने के बाद हत्या की थी.
पुनर्विचार याचिका में तर्क दिया गया था कि इस तरह के आचरण के मद्देनजर आरोपी एक कठोर अपराधी है जिसने अदालत के परोपकार का दुरुपयोग किया है.
इस मामले में पीठ ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए "यहां तक कि अगर एक घटना, जिसका मौजूदा मामले से कोई संबंध नहीं है, फैसले की घोषणा के बाद हुई थी, जो समीक्षा याचिकाओं पर विचार करने का आधार नहीं हो सकती.