केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने की मांग वाली याचिकाओं का विरोध किया है. मौजूदा कानून के मुताबिक पत्नी की इच्छा के बगैर जबरन सम्बंध बनाने पर भी पत्नी अपने पति पर बलात्कार का मुकदमा नही कर सकती है. सरकार ने क़ानून में पति को मिली इस छूट का समर्थन किया है.
हालांकि सरकार ने जोर देकर कहा है कि इसका मतलब ये नहीं वैवाहिक सम्बन्धों में पत्नी की इच्छा का कोई महत्व नहीं है. अगर पत्नी की इच्छा के बिना पति जबरन सम्बंध बनाता है तो ऐसी सूरत में पति को सज़ा देने लिए पहले से वैकल्पिक क़ानूनी प्रावधान है.ऐसी स्थिति में घरेलू हिंसा क़ानून, महिलाओं की गरिमा भंग करने से जुड़े विभिन्न प्रावधान के तहत पति पर केस दर्ज किया जा सकता है. लेकिन इस स्थिति की तुलना उस स्थिति से नहीं की जा सकती जहाँ बिना बिना वैवाहिक संबंधों के कोई पुरुष जबरन किसी महिला के साथ सम्बंध बनाता है. वैवाहिक सम्बन्धों और बिना वैवाहिक सम्बन्धों के बने ऐसे सम्बन्धों में सज़ा एक नहीं हो सकती. सरकार का कहना है कि अगर वैवाहिक सम्बन्धों को अपराध के दायरे में लाना भी है तो ये काम SC का नहीं है। विभिन्न स्टेकहोल्डर्स और राज्यो से परामर्श करके ही ऐसा कोई फैसला लिया जा सकता है.
मौजूदा कानून के मुताबिक जबरन सम्बंध बनाने पर पत्नी अपने पति पर बलात्कार का मुकदमा नही कर सकती. IPC की धारा 375 में जहां इसे अपराध के दायरे से बाहर रखा गया था। वही नए क़ानून भारतीय न्याय संहिता(BNS) के सेक्शन 63 के अपवाद (2) में भी शादीशुदा जिंदगी में जबरन संबंध बनाने को अपराध नहीं माना गया है।कोर्ट में दायर याचिकाओ में नए और पुराने क़ानून में मौजूद इन प्रावधानों को चुनौती दी गई है .