नई दिल्ली: महाराष्ट्र विधानसभा में अध्यक्ष और कुछ सदस्यों की अयोग्यता के मामले में दलीलों के मुख्य आधार नेबाम रेबिया पर आए Supreme Court के फैसले में बदलाव या सुधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है.
गुरूवार को संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि है 2016 का नबाम रेबिया मामला, जिसमें कहा गया था कि स्पीकर को अयोग्य ठहराने की कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है, जब उनके निष्कासन का प्रस्ताव लंबित है, तो एक बड़ी पीठ को भेजे जाने की आवश्यक्ता है.
पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि स्पीकर को हटाने का नोटिस अयोग्यता नोटिस जारी करने के लिए स्पीकर की शक्तियों को प्रतिबंधित करेगा या नहीं, जैसे मुद्दों को बड़ी बेंच द्वारा जांच की जरूरत है-
पीठ ने कि CJI: इस मामले को बड़ी बेंच को रेफर करने के बाद, नबाम रेबिया इस मामले में सख्ती से पेश नहीं हुए और हमने इस विशेष मामले की खूबियों का फैसला किया-
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि उद्वव को दोबारा सीमए बनाने का सवाल नही है ,अयोग्यता के मामले पर सुप्रीम कोर्ट फैसला नहीं ले सकती है. पीठ ने कहा कि राज्यपाल द्वारा उद्धव को बुलाने का फैसला गलत था और हम पुरानी स्थिती को बहाल नही कर सकते.
शिंदे गुट की याचिका खारिज: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने शिंदे गुट की याचिका को खारिज कर दिया हैं.
संविधान पीठ ने कहा है कि व्हिप का अधिकार पार्टी के नेता को है, विधायक दल के नेता कोई अधिकार नही है.
असल पार्टी की दलील पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा है कि संख्याबल पर आयोग्यता से नही बचा जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विधानसभा के स्पीकर को सिर्फ पार्टी व्हिप को मान्यता देनी चाहिए थी, स्पीकर द्वारा भरत गोगावले को पार्टी का चीफ व्हिप मान लेना गलत था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उद्धव ठाकरे को विधायकों ने अपना नेता माना था, स्पीकर को स्वतंत्र जांच करने के बाद फैसला लेना था.
संविधान पीठ ने कहा है कि डेप्युटी स्पीकर को फैसले से रोकना सही नहीं है. हम इससे सहमत नहीं हैं। सिर्फ विधायक तय नहीं कर सकते कि व्हिप कौन होगा, व्हिप को पार्टी से अलग करना ठीक नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में फ्लोर टेस्ट जरूरी नही था, फलोर टेस्ट का कोई आधार नही था क्योकि विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव नहीं दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के राज्यपाल की भूमिका पर भी सवाल खड़े करते हुए कहा कि राज्यपाल से राजनीति की उम्मीद नही की जाती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल का फ्लोर टेस्ट का फैसला गलत था.
पीठ ने कहा कि सुरक्षा का अभाव यह निष्कर्ष निकालने का कारण नहीं है कि एक सरकार गिर गई है और यह राज्यपाल द्वारा भरोसा किए जाने के लिए एक बाहरी कारण के अलावा और कुछ नहीं था। अनुच्छेद 163 के तहत राज्यपाल की विवेकाधीन शक्ति संविधान में स्पष्ट वर्णित विषयों के लिए है
चुनाव आयोग ही जारी कर सकता है सिंबल: सिंबल पर संविधान पीठ ने कहा है सिंबल केवल चुनाव आयेाग ही जारी कर सकता है. पीठ ने कहा है चुनाव आयेाग को सिंबल जारी करने से नहीं रोक सकते.
सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ की अध्यक्षता में गठित 5 सदस्य संविधान पीठ ने 9 दिन तक चली मैराथन सुनवाई के बाद 16 मार्च को फैसला सुरक्षित रख लिया था. 5 सदस्य संविधान में मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल है.
संविधान पीठ के दूसरे वरिष्ठ सदस्य जस्टिस एम आर शाह 3 दिन बाद यानी 15 मई को ही अपने पद से सेवानिवृत हो रहे है, ऐसे में उनकी सेवानिवृति से पूर्व संविधान पीठ यह फैसला सुना रही है.
सुप्रीम कोर्ट में 9 दिन से लगातार महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट को लेकर सुनवाई की थी. ठाकरे गुट की ओर से कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने पैरवी की.
वही वही महाराष्ट्र के राज्यपाल और एकनाथ शिंदे गुट की ओर से अधिवक्ता महेश जेठमलानी, हरीश साल्वे और नीरज कौल ने दलीलें पेश की थी..
सुप्रीम कोर्ट ने नबाम रेबिया केस को सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेचं को रेफर किया.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि फडणवीस और अन्य दोनों अविश्वास प्रस्ताव ला सकते थे.उन्हें किसी ने नही रोका था. राज्यपाल के पास कोई वस्तुनिष्ठ सामग्री नहीं थी और इस मामले में राज्यपाल के विवेक का प्रयोग कानून के अनुसार नहीं था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विधायक को सदन की कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार होता है.
व्हीप जारी कर विशेष तरीके से मतदान करने का अधिकार राजनीतिक दल द्वारा जारी किया जाता है न कि विधायक दल द्वारा.
पीठ ने कहा कि सदन में बहुमत साबित करने के लिए ठाकरे को बुलाना राज्यपाल का गलत फैसला था.
अब इस मामले में पहले जैसी यथास्थिति बहाल नहीं की जा सकती क्योंकि ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया और इस्तीफा दे दिया. और इस तरह राज्यपाल का भाजपा को सरकार बनाने के लिए बुलाना सही हो गया.
वर्ष 2022 में शिवसेना के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में विधायकों की बगावत के बाद महाराष्ट्र के तत्कालिन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को इस्तीफा देना पड़ा था.
ठाकरे के इस्तिफे के बाद शिंदे के नेतृत्व में महाराष्ट्र में नई सरकार का गठन हुआ था.
इस पूरे घटनाक्रम के दौरान जून और जुलाई, 2022 में दाखिल सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाए दायर की गयी. अगस्त 2022 में सीजेआई ने इस मामले को संविधान पीठ को सौंपा था.
सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यतौर से 6 बिंदूओ पर सुनवाई की, जिसके मूल में राज्यपाल द्वारा एकनाथ शिंदे को सरकार बनाने का निमंत्रण देना शामिल था.
क्या तत्कालीन डिप्टी स्पीकर इस वजह से शिंदे कैंप के विधायकों की अयोग्यता पर विचार करने में सक्षम नहीं थे कि उनके खिलाफ खुद ही पद से हटाने का प्रस्ताव लंबित था?
क्या सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट अयोग्यता पर फैसला ले सकते हैं?
विधायकों के खिलाफ अयोग्यता का मामला लंबित रहते क्या वह सदन की कार्यवाही में हिस्सा ले सकते हैं?
किसी विधायक को अयोग्य करार दिए जाने की स्थिति में सदन की उस कार्यवाही को किस तरह से देखा जाएगा जिसमें उसने मामला लंबित रहने के दौरान हिस्सा लिया था?
पार्टी के चीफ व्हिप यानी मुख्य सचेतक की नियुक्ति कौन कर सकता है? शिवसेना के तत्कालीन आलाकमान की तरफ से नियुक्त व्हिप को शिंदे कैंप ने विधायक दल में अपने बहुमत के आधार पर हटा कर क्या सही किया?
क्या शिंदे कैंप के 40 विधायकों को दलबदल कानून के तहत किसी दूसरी पार्टी में विलय करना चाहिए था? वह दूसरी पार्टी के समर्थन से खुद सरकार नहीं बना सकते थे?
क्या राज्यपाल ने एकनाथ शिंदे को सरकार बनाने का निमंत्रण देकर गलती की?