हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक ट्रायल में लापरवाही बरतने पर पुलिस-जज को फटकार लगाई है. उच्च न्यायालय ने पाया कि पुलिस ने गलत डॉक्यूमेंट्स जब्त किए और ट्रायल कोर्ट ने उसी आधार पर अपीलकर्ता-पोस्टमास्टर को दोषी करार दिया है, तीन साल जेल की सजा भी सुनाई. सेशन कोर्ट ने भी फैसले को सही ठहराया. सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय का ध्यान इस गलती पर गया. बता दें कि रायगढ़ जिले के एक पोस्टमास्टर पर साल 2006 से 2007 के बीच 28,834 रूपये की हेराफेरी का आरोप लगाया गया था. पुलिस ने FIR दर्ज किया, जरूरी कागजात जब्त किए. मजिस्ट्रेट और सेशन कोर्ट ने तीन साल जेल की सजा भी सुनाई. अब बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है, कि पुलिस ने जो कागजात जमा किए है, वे साल 2004 से 2005 के बीच के हैं.
पोस्टमास्टर ने बॉम्बे हाईकोर्ट में सजा के फैसले से दोबारा से जांच की मांग की. इस आवेदन को जस्टिस एसएम मोदक की सिंगल-जज बेंच ने सुना. बेंच ने पाया कि ट्रायल कोर्ट और अपीलीय अदालत ने एक सबूत की अनुपस्थिति को नजरअंदाज करते हुए फैसला सुनाया है.
बेंच ने कहा,
"यह शेयरहोल्डर्स (शिकायत की जांच व ट्रायल से जुड़े लोग) को दी गई जिम्मेदारी की घोर अपेक्षा है. "
बेंच ने पोस्टमास्टर को सजा से बरी किया. साथ ही महाराष्ट्र ज्युडिशियल एकेडमी (एमजेए) के संयुक्त निदेशक को आदेश दिया कि इस घटना को जजों के ट्रेनिंग लेवल पर बताएं, उन्हें सिखाए. बेंच ने एमजेए को इस फैसले पर किए गए कार्यान्वयन की रिपोर्ट देने को भी कहा है.
बेंच ने कहा,
"मैं पुलिस और न्यायाधीशों के इस उदासीन दृष्टिकोण को संयुक्त निदेशक, एमजेए के सामने लाना आवश्यक समझता हूं. ताकि सीख रहे जजों की उक्त घटनाक्रम की जानकारी हो जिससे वे ऐसी लापरवाही से बच सकें."
पोस्टमास्टर आनंद सकपाल पर पैसों की हेराफेरी करने का आरोप लगा. आरोप में बताया गया कि पोस्टमास्टर ने 20 अगस्त, 2006 से लेकर 28 फरवरी, 2007 के बीच में विभाग के करीब 28,834 रूपये की हेराफेरी की है. डाक के वरिष्ठ अधिकारी ने जांच की, पोस्टमास्टर के खिलाफ आरोप लगाया गया. शिकायत के आधार पर, पुलिस ने पोस्टमास्टर के खिलाफ आईपीसी की धारा 409 (लोक सेवक द्वारा अपराधिक विश्वास का उल्लंघन) और सेक्शन 468 (जालसाजी) के तहत मुकदमा दर्ज किया. अदालत में सुनवाई हुई.
ज्युडिशियल मजिस्ट्रेट ने जालसाजी का दोषी पाते हुए पोस्टमास्टर को तीन साल की सजा सुनाई. फैसले को सेशन जज के पास चुनौती दी गई. सेशन जज ने मजिस्ट्रेट के फैसले को बरकरार रखा.
मामला हाईकोर्ट पहुंचा. पोस्टमास्टर ने फैसले की जांच की मांग की. उच्च न्यायालय ने पाया कि पुलिस ने शिकायत से संबंधित जब्त नहीं की थी. बल्कि जब्त की गई रजिस्टर में अगस्त, 2004 से फरवरी, 2005 तक का हिसाब लिखा था. शिकायत से संबंधित रजिस्टर गायब होने पर एवं ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनवाई के दौरान लापरवाही बरतने पर भटकार लगाया है. गलती पाते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट एवं सेशन जज को खूब फटकार लगाई है.