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Bombay High Court की पूर्व अतिरिक्त न्यायाधीश पुष्पा गनेडीवाला ने पेंशन के लिए दायर की याचिका

बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ की पूर्व अतिरिक्त न्यायाधीश, जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला मे अपने एक फैसले के चलते स्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति से इनकार के बाद इस्तीफा देना पड़ा। अब न्यायाधीश गनेडीवाला ने एक जज की पेंशन की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है...

Justice Pushpa Ganediwala - Bombay High Court

Written by Ananya Srivastava |Published : August 1, 2023 10:43 AM IST

नागपुर: बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ (Bombay High Court Nagpur Bench) की पूर्व अतिरिक्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला (Justice Pushpa Ganediwala) ने न्यायाधीश के लिए लागू पेंशन की मांग करते हुए अदालत का रुख किया है।

न्यायमूर्ति गनेडीवाला, जो बलात्कार के एक मामले में अपने 'त्वचा से त्वचा' के फैसले के बाद सवालों के घेरे में आ गईं, को पिछले साल स्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति से इनकार के बाद इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा।

समाचार एजेंसी आईएएनएस के हिसाब से उन्‍होंने उच्च न्यायालय (मूल पक्ष) रजिस्ट्रार के 2 नवंबर 2022 के संचार को चुनौती दी है कि वह एक न्यायाधीश के पेंशन और अन्य लाभों के लिए अयोग्य हैं। गनेडीवाला ने इसी पखवाड़े दायर अपनी याचिका में तर्क दिया है कि चाहे वह स्वेच्छा से सेवानिवृत्त हुई हो या सेवानिवृत्ति प्राप्त करने के बाद, वह पेंशन और अन्य लाभों की हकदार हैं।

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उनकी याचिका में उत्तरदाताओं के रूप में रजिस्ट्रार-जनरल के माध्यम से बॉम्बे एचसी, केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय, महाराष्ट्र विधि एवं न्यायपालिका विभाग के सचिव और अन्य को नामित किया गया है।

सात वर्षों तक वकील के रूप में अभ्यास करने के बाद, गनेडीवाला को 2007 में जिला न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। बाद में उन्होंने महाराष्ट्र न्यायिक अकादमी के संयुक्त निदेशक, सिटी सिविल और सत्र न्यायालय में प्रधान न्यायाधीश और एचसी रजिस्ट्रार के रूप में कार्य किया। उन्‍हें 13 फरवरी 2019 को दो साल के लिए अतिरिक्‍त न्यायाधीश नियुक्‍त किया गया।

उनके तीन फैसलों ने हंगामा खड़ा कर दिया था। एक में उन्होंने बलात्कार की सजा को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन करने के लिए कुछ भी नहीं था। दूसरे में उन्होंने कहा था कि उस समय नाबालिग का हाथ पकड़ना या उस समय आरोपी की पैंट की ज़िप खुली होना यौन उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं आता है।

तीसरे में उन्‍होंने फैसला सुनाया कि एक 12 साल की लड़की का टॉप हटाए बिना उसके स्तन को दबाना यौन उत्‍पीड़न की श्रेणी में नहीं आता है।ये तीनों फैसले जनवरी 2021 में एक सप्ताह के भीतर सुनाए गए थे।

इनमें अंतिम मामला - जिसमें उन्‍होंने तर्क दिया था कि पोक्‍सो अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध तभी माना जाएगा जब सीधे 'त्वचा से त्वचा' का संपर्क हुआ हो - काफी विवाद में रहा था और इस पर सार्वजनिक हंगामा भी हुआ था।

हंगामे के कारण जनवरी 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें स्थायी न्यायाधीश बनाने की अपनी सिफारिश रद्द कर दी और नवंबर 2021 में उनके फैसले को खारिज कर दिया। आखिरकार उन्होंने 11 फरवरी 2022 को इस्तीफा दे दिया।

गनेडीवाला ने 19 जुलाई को एक वकील के माध्यम से दायर पेंशन और अन्य लाभों की मांग वाली अपनी याचिका में कहा कि उन्होंने लगभग तीन वर्षों तक अतिरिक्त न्यायाधीश और 11 वर्षों से अधिक समय तक जिला न्यायाधीश के रूप में काम किया है।