हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जांच एजेंसियों और अदालतों का वक्त बर्बाद करने वाले व्यक्तियों पर भारी जुर्माना लगाने के लिए एक मजबूत मैकेनिज्म की आवश्यकता है. ये लोग जो किसी नाराजगी के चलते शिकायत दर्ज कराते हैं, मुकदमा दर्ज कराते हैं. बाद में अदालत से मुकदमा खारिज करने की मांग करते हैं. बता दें कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने ये बातें एक जमानत याचिका पर सुनवाई करने के दौरान कहीं.
जस्टिस मनीष पिटाले की पीठ बलात्कार के मामले में जेल में बंद व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी. अदालत को दोनों पक्षों ने बताया कि उनमें सुलह हो गई है और वे मुकदमा वापस लेना चाहते हैं. वहीं, पुलिस की ओर से मौजूद लोक अभियोजक ने इस प्रस्ताव का विरोध किया. अदालत ने मौजूद पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अनावश्यक प्राथमिकी (FIR) से अदालत और पुलिस का वक्त बर्बाद करने को लेकर नाराजगी जताई.
बेंच ने कहा,
"समय बीतने के साथ, कथित पीड़ित और आरोपी अपने मतभेदों को सुलझाकर एक साथ आ जाते हैं, और फिर पीड़िता जमानत देने और ऐसी कार्यवाही को रद्द करने के लिए सहमति देती है. इससे अदालत का भी बहुमूल्य समय बर्बाद होता है,"
बेंच ने आगे कहा,
"इस अदालत की राय है कि ऐसे मामलों में जांच प्राधिकरण और अदालत का समय बर्बाद करने वाले व्यक्तियों पर भारी जुर्माना लगाने के लिए एक मजबूत तंत्र विकसित किया जाना चाहिए. एक उपयुक्त मामले में, यह अदालत ऐसा आदेश पारित करेगी."
याचिकाकर्ता के वकील ज्योति राम यादव ने अदालत को सूचित किया कि वह और पीड़िता एक रिश्ते में थे और कुछ गलतफहमी के कारण 1 नवंबर 2023 को प्राथमिकी दर्ज की गई थी.
वहीं, पीड़िता की ओर से पेश हुए वकील ने एक हलफनामा पेश किया. हलफनामे को लेकर पीड़ित के वकील ने कहा कि दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से विवाद को सुलझा लिया है.
दूसरी ओर, पुलिस की ओर से पेश हो रहे अतिरिक्त लोक अभियोजक
(Additional Public Prosecutor) तनवीर खान ने इस याचिका का विरोध किया. उन्होंने कहा कि मुकदमा गंभीर अपराध (बलात्कार) का है. विवाद होने पर याचिकाकर्ता ने पीड़िता का मोबाइल नंबर सोशल मीडिया पर पब्लिकली शेयर कर दिया. इसके दुष्परिणाम पीड़िता को भुगतने भी पड़े. उसे अनजान लोगों के पास से अश्लील मैसेज मिल रहे हैं. भले ही आपसी सहमति से दोनों पक्षों ने विवाद सुलझाने को राजी हो गए हों, लेकिन इस गंभीर अपराध की अनदेखी नहीं की जा सकती है.
हालांकि, दोनों पक्षों की सहमति को देखते हुए अदालकत ने याचिका स्वीकार करते हुए आरोपी-याचिकाकर्ता को जमानत दे दी है.