नई दिल्ली: मानवाधिकार कार्यकर्ता मेधा पाटकर द्वारा दर्ज कराए गए एक मानहानि मामले में दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना को पेशी से राहत मिली है. मेट्रोपॉलिटन मेजिस्ट्रेट गौरव दहिया के अनुसार उपराज्यपाल वीके सक्सेना की ओर से दो अर्जियां दाखिल की गई थी. इन दो अर्जियों में से 1 अर्जी में सक्सेना ने व्यक्तिगत पेशी से स्थाई तौर पर छूट मांगी थी तो वहीं दूसरी अर्जी में उन्हौने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत बचाव का अनुरोध किया था.
अदलात ने क्या कहा
सुनवाई की दौरान अदालत ने कहा कि वर्तमान मामला दक्षिण पूर्व जिले में लंबित मामलों में सबसे पुराने मामलों में से एक है और शिकायतकर्ता (मेधा पाटकर) के साक्ष्यों के लिए सूचीबद्ध है. बकौल कोर्ट इस मामले में 2 गवाहों से पूछताछ बाकी है. जबकि मेधा पाटकर से पूछताछ 2019 में ही की जा चुकी है.
अदालत ने कहा, ‘‘ इस मामले में आरोपी दिल्ली के उप राज्यपाल जैसे प्रतिष्ठित पद पर आसीन है और इसलिए अहम संवैधानिक कर्तव्यों को देखते हुए तथा आरोपी के वकील ने कहा है कि किसी भी चरण में आरोपी की पहचान पर कोई विवाद नहीं होगा साथ ही उसने प्रत्येक तारीख पर नियमित तौर पर पेश होने की बात कही है।’’ इस चरण में अदालत के लिए सबसे प्रासंगिक विचार यह है कि वह किसी भी पक्ष के प्रति पूर्वाग्रही हुए बगैर सुनवाई को आगे बढ़ाए तथा अगर अर्जी मंजूर की जाती है तो शिकायतकर्ता को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं हो।
वीके सक्सेना को मिली छूट
उप राज्यपाल के अधिवक्ता ने कोर्ट से कहा कि सक्सेना की प्रत्येक तिथि पर अदालत में उपस्थिति उनके महत्वपूर्ण संवैधानिक कर्तव्यों के कारण संभव नहीं है और यदि सक्सेना की व्यक्तिगत उपस्थिति के बजाय आरोपी के वकील के माध्यम से सुनवाई की अनुमति दी जाती है तो शिकायतकर्ता को कोई नुकसान नहीं होगा।इसके बाद कोर्ट ने मानहानि के आरोपी वीके सक्सेना को अगले आदेश तक व्यक्तिगत पेशी से छूट प्रदान कर दी.
क्या था मामला
साल 2000 में नर्मदा बचाओ अभियान के दौरान मेधा पाटकर के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित करने के मामले में मेधा पाटकर के द्वारा वीके सक्सेना पर मानहानि का मुकदमा दर्ज किया था. जब ये मुकदमा दर्ज हुआ तब सक्सेना अहमदाबाद स्थित एक गैर सरकारी संगठन "नेशनल कॉउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज" के प्रमुख थे.