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मानहानि मामले में Medha Patkar की मुश्किलें बढ़ी, Delhi Court ने आदेश ना मानने पर उठाया ये कदम

दिल्ली की एक अदालत ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर के खिलाफ एक दशक पुराने मानहानि मामले में सजा के आदेश का पालन न करने और पेश न होने के कारण गैर-जमानती वारंट (NBW) जारी किया है.

VK Saxena, Medha Patkar

Written by Satyam Kumar |Published : April 23, 2025 11:39 PM IST

सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर के खिलाफ दिल्ली की एक अदालत ने मानहानि के एक मामले में सजा के आदेश का उल्लंघन करने पर गैर-जमानती वारंट जारी किया है. यह वारंट उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना द्वारा दायर एक दशक पुराने मानहानि मामले से संबंधित है, जिसमें पाटकर को पहले पांच महीने की साधारण कैद और 10 लाख रुपये का मुआवजा देने की सजा सुनाई गई थी. हालांकि, अपीलीय अदालत ने सजा को संशोधित करते हुए पाटकर को एक साल के अच्छे आचरण पर परिवीक्षा पर रिहा करने का आदेश दिया था, बशर्ते वे 1 लाख रुपये का मुआवजा जमा करें. मेधा पाटकर के खिलाफ गैर-जमानती वारंट इसी आदेश का पालन नहीं करने के चलते जारी हुआ.

आज Court ने क्या कहा?

अदालत ने दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना द्वारा दायर मानहानि के मामले में उन्हें परिवीक्षा बॉण्ड और एक लाख रुपये का जुर्माना जमा करने के लिए कहा था. अदालत ने स्थगन के लिए पाटकर की दलीलों को ओछी और शरारतपूर्ण करार दिया तथा कहा कि इसे अदालत को धोखा देने के इरादे से दायर किया. अदालत ने पाटकर को उनके इस कदम के प्रति आगाह करते हुए कहा कि इससे अदालत को उदार सजा पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है.

एडिशनल सेशन जज विशाल सिंह ने सुनवाई के दौरान कहा कि आठ अप्रैल को दी गई सजा के आदेश का पालन करने के लिए अदालत के समक्ष उपस्थित होने के बजाय, दोषी (पाटकर) अनुपस्थित हैं और सजा के आदेश का पालन करने और मुआवजा राशि जमा करने के अधीन परिवीक्षा का लाभ लेने में जानबूझकर विफल रही हैं. जज ने कहा कि दोषी की मंशा स्पष्ट है कि वह जानबूझकर अदालत के आदेश का उल्लंघन कर रही हैं; वह अदालत के समक्ष उपस्थित होने से बच रही हैं और अपने विरुद्ध पारित सजा की शर्तों को स्वीकार करने से भी बच रही हैं. इस अदालत द्वारा आठ अप्रैल को पारित सजा के निलंबन का कोई आदेश नहीं है.

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अदालत ने कहा कि इस परिदृश्य को देखते हुए उसके पास दंडात्मक आदेश के माध्यम से उनकी पेशी के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा है. अदालत ने निर्देश दिया कि दिल्ली पुलिस आयुक्त कार्यालय के माध्यम से दोषी मेधा पाटकर के खिलाफ अगली तारीख पर पेशी के लिए गैर-जमानती वारंट (एनबीडब्ल्यू) जारी करें. एनबीडब्ल्यू और आगे की कार्यवाही पर रिपोर्ट तीन मई को पेश करें. जज ने कहा कि मेधा पाटकर ने इस आधार पर सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया था कि उनकी पुनरीक्षण याचिका दिल्ली हाई कोर्ट में लंबित है.

जज ने कहा कि अर्जी में कोई पुख्ता तथ्य नहीं है; दिल्ली उच्च न्यायालय के 22 अप्रैल के आदेश में ऐसा कोई निर्देश नहीं है कि दोषी मेधा पाटकर को आठ अप्रैल के सजा के आदेश का पालन करने की आवश्यकता नहीं है. वर्तमान अर्जी ओछी शरारतपूर्ण है और केवल अदालत को धोखा देने के लिए तैयार किया गया है. उन्होंने आवेदन को इसके साथ ही खारिज कर दिया.

एक लाख जुर्माना और पांच साल जेल की सजा

मानहानि मामले में पाटकर को पांच महीने की कैद की सजा सुनाई गई थी, लेकिन अदालत ने उन्हें आठ अप्रैल को ‘अच्छे आचरण की परिवीक्षा’ पर रिहा कर दिया था। सत्र न्यायालय ने मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को ‘संशोधित’ कर दिया था, जिसमें पाटकर को एक जुलाई, 2024 को पांच महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई गई थी. अदालत ने उनसे एक लाख रुपये की मुआवजा राशि जमा करने को कहा, जो सक्सेना को दी जानी थी. अदालत ने कहा था कि मुआवजा राशि जमा करने पर, दोषी या अपीलकर्ता मेधा पाटकर को 25,000 रुपये का परिवीक्षा बॉण्ड प्रस्तुत करना होगा तथा परिवीक्षा बॉण्ड प्रस्तुत करने की तिथि से एक वर्ष की अवधि के लिए इतनी ही राशि की जमानत भी देनी होगी. यह मामला अदालत में बुधवार को पाटकर की उपस्थिति, परिवीक्षा बॉण्ड प्रस्तुत करने और जुर्माना राशि जमा करने के लिए सूचीबद्ध किया गया था। मामले में सक्सेना की ओर से पेश उनके वकील गजिंदर कुमार ने कहा कि पाटकर न तो उपस्थित हुईं और न ही उन्होंने अदालत के निर्देशों का पालन किया. सक्सेना ने नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष के रूप में पाटकर के खिलाफ 24 नवंबर 2000 को जारी उनकी मानहानिकारक प्रेस विज्ञप्ति के लिए मामला दर्ज कराया था. पिछले साल 24 मई को मजिस्ट्रेट अदालत ने कहा था कि पाटकर ने अपने बयान में सक्सेना को कायर कहा था तथा हवाला लेन-देन में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाया था, जो न केवल मानहानिकारक थे, बल्कि उनके बारे में नकारात्मक धारणा को भड़काने के लिए गढ़े गए थे.

(खबर पीटीआई इनपुट से है)