बीते दिन सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बंगाल सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि देश में आरक्षण केवल समाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर दिया जा सकता है, धर्म के आधार पर आरक्षण देने का प्रावधान नहीं है. सुप्रीम कोर्ट कलकत्ता हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देनेवाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो साल 2010 के बाद से बने सभी ओबीसी सर्टिफिकेट को रद्द (Cancellation of OBC Certificate) कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने ओबीसी सर्टिफिकेट रद्द करने के कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले पर सुनवाई की. अदालत ने साफ तौर पर कहा कि राज्य धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दे सकती है. इस पर राज्य की ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल ने आपत्ति जताते हुए कहा कि ये आरक्षण समाजिक पिछड़ेपन के आधार पर ही दी गई है.
पश्चिम बंगाल सरकार ने 77 जातियों को ओबीसी के तहत आरक्षण देने के अपने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जिनमें मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय की जातियां शामिल हैं. बंगाल सरकार ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दिया है, जिसमें इन जातियों के लिए आरक्षण को अवैध घोषित किया गया था.
कलकत्ता हाईकोर्ट ने 22 मई के फैसले में कहा कि 2010 से जारी 5,00,000 से अधिक ओबीसी प्रमाणपत्रों का उपयोग अब नौकरियों में आरक्षण प्राप्त करने के लिए नहीं किया जा सकता है. जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती और राजशेखर मंथा की खंडपीठ ने 2011 में सत्ता में आई तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा जारी सभी ओबीसी प्रमाणपत्रों को प्रभावी रूप से रद्द कर दिया. कलकत्ता हाईकोर्ट ने ओबीसी आरक्षण के प्रावधानों को रद्द करते हुए कहा था कि यह केवल धर्म पर आधारित है, जो असंवैधानिक है. अदालत ने 2012 के आरक्षण कानून को भी अवैध पाते हुए 77 मुस्लिम समुदायों का ओबीसी दर्जा रद्द कर दिया था. कलकत्ता हाईकोर्ट का ये फैसला ओबीसी सर्टिफिकेट जारी करने की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली 2012 जनहित याचिका पर आया है.