नई दिल्ली: बैंक कर्जदारों से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि कर्जदारों के खातों को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने से पूर्व उन्हे सुना जाना चाहिए और उनके खाते को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने का निर्णय तर्कपूर्ण आदेश के साथ होना चाहिए.
CJI DY Chandrachud और Justice Hima Kohli की पीठ ने SBI बनाम Rajesh Agarwal केस में तेलंगाना हाईकोर्ट के 2020 फैसले को बरकरार रखते हुए हुए यह बता कही है. वही पीठ ने इससे जुड़ा गुजरात हाईकोर्ट का एक आदेश रद्द कर दिया है.
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि कर्जदार के खाते को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने का निर्णय तर्कपूर्ण आदेश के साथ होना चाहिए जिसमें Rule of adi alteram partem के नियम को इसमें पढ़ा जाना चाहिए और कर्जदार के खातों पर रोक लगाने से पहले सुनवाई की आवश्यकता है."
पीठ ने कहा कि कर्जदारों को संस्थागत वित्त तक पहुँचने से रोकना उन पर गंभीर प्रभाव डालता है और यह ब्लैकलिस्टिंग के समान है जो क्रेडिट स्कोर को प्रभावित करता है.
पीठ ने अपने फैसले में कहा "धोखाधड़ी वाले खातों पर आरबीआई के मास्टर सर्कुलर में 'ऑडी अल्टरम पार्टेम' के सिद्धांत को पढ़ा जाना चाहिए।" हालांकिप्रथम सूचना रिपोर्ट के पंजीकरण से पहले सुनवाई का कोई अवसर आवश्यक नहीं था।
पीठ ने कहा कि धोखाधड़ी पर मास्टर डायरेक्शन के तहत उधारकर्ताओं को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए. पीठ ने कहा कि यह नहीं माना जा सकता कि मास्टर सर्कुलर प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को बाहर करता है.
गौरतलब है कि तेलंगाना हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, "ऑडी अल्टरम पार्टेम के सिद्धांत, चाहे कितना भी छोटा क्यों न हो, किसी पार्टी को 'धोखेबाज कर्जदार' या 'धोखाधड़ी वाले खाते के धारक' के रूप में घोषित करने से पहले लागू किया जाना चाहिए"
सुप्रीम कोर्ट ने भी अब इस आदेश पर मुहर लगा दी है.