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पूर्व कांग्रेस सासंद सज्जन कुमार को उम्रकैद, 1984 के सिख विरोधी दंगे में बाप-बेटे की हत्या मामले में Delhi Court ने मुकर्रर की सजा

यह दूसरा मामला है, जिसमे सज्जन कुमार को उम्रकैद की सज़ा हुई है. इससे पहले दिल्ली के राजनगर इलाके में पांच सिखों के क़त्ल के जुर्म में उसे हाई कोर्ट से उम्रकैद की सज़ा हुई थी. सज्जन कुमार उस केस में पहले से जेल में बंद है.

Sajjan kumar, Rouse Avenue Court

Written by Satyam Kumar |Published : February 25, 2025 3:16 PM IST

1984 Anti-Sikh Riots: आज दिल्ली की एक जिला अदालत ने पूर्व सांसद व कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई है. सज्जन कुमार के खिलाफ दिल्ली के सिख विरोधी दंगे के दौरान एक बाप-बेटे की हत्या का आरोप लगा था. घटना के 16 साल बाद जांच एजेंसी ने उनका नाम इस मुकदमे में जोड़ा था. बताते चलें कि यह दूसरा मामला है, जिसमे सज्जन कुमार को उम्रकैद की सज़ा हुई है. इससे पहले दिल्ली के राजनगर इलाके में पांच सिखों के क़त्ल के जुर्म में उसे हाई कोर्ट से उम्रकैद की सज़ा हुई थी. सज्जन कुमार उस केस में पहले से जेल में बंद है. पिछली सुनवाई में, राउज एवेन्यू कोर्ट ने सज्जन कुमार को दोषी ठहराया था और सजा पर विचार करने के लिए दोनों पक्षों को मौजूद रहने को कहा था. बता दें कि इस दौरान पीड़ित पक्ष ने रेयरेस्ट ऑफ रेयर बताते हुए सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा देने की मांग की गई थी.

सज्जन कुमार को बाप-बेटे की हत्या मामले में उम्रकैद

आज राउज एवेन्यू कोर्ट में जज कावेरी बावेजा ने पूर्व कांग्रेस सांसद सज्जन कुमार को इस हत्या मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई.  विशेष न्यायाधीश कावेरी बवेजा ने 18 फरवरी को सज्जन कुमार को हत्या के आरोप में दोषी ठहराने के बाद सजा का ऐलान किया.

जज कावेरी बावेजा ने कहा कि कुमार द्वारा किए गए अपराध निस्संदेह क्रूर और निंदनीय थे, लेकिन अदालत ने सजा को इसलिए कम रखा है, क्योंकि सज्जन कुमार की आयु 80 वर्ष और उन्हें कई बीमारी भी हैं. अदालत ने कहा कि ये वजहें मृत्युदंड (Death Penalty) के बजाय कम सजा लगाने के पक्ष में हैं. हत्या का अपराध अधिकतम मृत्युदंड को आकर्षित करता है जबकि न्यूनतम आजीवन कारावास है. जज ने कहा, "जेल में उनके आचरण की रिपोर्ट को देखें तो आरोपी का 'संतोषजनक' आचरण, उनकी बीमारियां, समाज में उनकी जड़ें और उनके सुधार की संभावना जैसे कारक जीवन कारावास की सजा की ओर झुकते हैं. अदालत ने यह भी कहा कि कुमार के व्यवहार के बारे में कुछ नकारात्मक रिपोर्ट नहीं आई और उनका आचरण संतोषजनक था.

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जनवरी 31 को, राउज एवेन्यू कोर्ट ने सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा था. अभियोजन पक्ष के वकील मनीष रावत ने मामले में महत्वपूर्ण सबूत पेश किए. वहीं, सज्जन कुमार के वकील अनिल शर्मा ने यह तर्क दिया कि सज्जन का नाम पहले से नहीं था और गवाह द्वारा उन्हें आरोपी के रूप में नामित करने में 16 वर्षों की देरी हुई.

अतिरिक्त लोक अभियोजक रावत ने जवाब में कहा कि आरोपी और पीड़ित के बीच कोई पहचान नहीं थी. जब गवाह को सज्जन कुमार के बारे में जानकारी मिली, तब उन्होंने अपने बयान में सज्जन कुमार का नाम  लिया.

वरिष्ठ अधिवक्ता एच. एस. फूलका ने दंगे के पीड़ितों के लिए पेश होते हुए कहा कि पुलिस की जांच में धांधली की गई थी. उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने दंगों की जांच को जानबूझकर धीमा किया था ताकि आरोपियों को बचाया जा सके. उनका तर्क था कि दंगों के दौरान स्थिति असाधारण थी, इसलिए इन मामलों को उसी संदर्भ में देखना चाहिए. फूलका ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि यह मामला अलग नहीं है, बल्कि यह एक बड़े नरसंहार का हिस्सा है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 1984 में दिल्ली में 2,700 सिखों की हत्या की गई थी. उच्च न्यायालय ने इस मामले को मानवता के खिलाफ अपराध करार दिया था.

दिल्ली दंगे में बाप-बेटे की हत्या का मामला

यह घटना उस समय की है जब देश में सिखों के खिलाफ दंगों का माहौल था, जो इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़क उठा था. 1 नवंबर, 1984 को, सरस्वती विहार क्षेत्र में एक पिता-पुत्र की जोड़ी, जसवंत सिंह और उनके बेटे तरुणदीप सिंह की हत्या कर दी गई थी. इस मामले की शुरुआत पंजाबी बाग पुलिस स्टेशन में एक FIR दर्ज करने से हुई थी. बाद में, जस्टिस जी. पी. माथुर समिति की सिफारिश पर विशेष जांच दल (SIT) ने इस मामले की जांच की और चार्जशीट दायर की. जस्टिस माथुर समिति ने सिख दंगे से जुड़े 114 मामलों को फिर से खोलने की सिफारिश की थी, जिसमें यह मामला भी शामिल था. 16 दिसंबर, 2021 को, अदालत ने सज्जन कुमार के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप तय किए. SIT ने आरोप लगाया कि सज्जन कुमार उस भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे, जिसने इन दोनों व्यक्तियों को जिंदा जलाने के साथ-साथ उनके घर को भी नुकसान पहुंचाया. जांच के दौरान, गवाहों का पता लगाया गया और उनके बयान दर्ज किए गए. शिकायतकर्ता ने 23 नवंबर, 2016 को अपने बयान में दंगों के दौरान लूटपाट, आगजनी और हत्या की घटनाओं का वर्णन किया. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपी की तस्वीर उन्होंने एक पत्रिका में लगभग डेढ़ महीने बाद देखी थी.