नई दिल्ली: श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद में इलाहबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला देते हुए मथुरा के जिला जज को सिविल वाद को पुन: वापस भेजते हुए तय करने का निर्देश दिया है. जस्टिस प्रकाश पाडिया की एकलपीठ ने यह आदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड व ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह की प्रबंध समिति क याचिकाओं को निस्तारित करते हुए दिया है.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में मथुरा जिला जज को निर्देश दिया कि वह श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह भूमि विवाद से संबंधित मुकदमे का फैसला मथुरा जिला जज द्वारा 19 मई 2022 को दिए गए आदेश में की गई टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना करे.
हाईकोर्ट ने इस मामले में अंतरिम आदेश एवं पुनरीक्षण आदेश के खिलाफ दाखिल याचिका वापस करते हुए निस्तारित कर दी है। याचिका की पोषणीयता के मामले में कोर्ट ने कहा इस मामले में पहले ही फैसला आ चुका है। ऐसे में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड व अन्य की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने याचिका में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है
श्रीकृष्ण जन्म भूमि कटरा केशवदेव —ईदगाह भूमि विवाद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट, उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की याचिका पर हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए सिविल कोर्ट मथुरा को उसके समक्ष विचाराधीन वाद को तय करने का निर्देश दिया है.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सिविल कोर्ट मथुरा ने ”सिविल कटरा केशव देव की 13.37 एकड़ जमीन कृष्ण जन्मभूमि भगवान और श्री कृष्ण विराजमान के नाम करने तथा अवैध निर्माण हटाने और 20 जुलाई 1973 को रद्द करने की मांग में दाखिल वाद पंजीकृत ना कर गलती की है.” इसकी अर्जी दर्ज कर उसकी ग्राह्यता पर फैसला सुनाना कानून के खिलाफ है.
हाईकोर्ट ने जिला जज के आदेश को लेकर भी कहा कि जिला जज मथुरा ने सिविल जज के फैसले के खिलाफ अपील को रिवीजन में तब्दील कर कोई गलती नहीं की. कोर्ट को ऐसा करने का कानूनी अधिकार है.हाईकोर्ट ने कहा कि सिविल वाद की पोषणीयता विवाद को सिविल कोर्ट ही तय कर सकती है. हाईकोटर् ने कहा कि अनुच्छेद 227 में इस मुद्दे को तय करने का अधिकार हाईकोर्ट को नहीं है. और न ही जिला जज पुनरीक्षण में तय कर सकते थे.
भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की ओर से सितंबर 2020 में सिविल जज मथुरा के समक्ष एक मुकदमा दायर किया गया था, जिसमें शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने और देवता को 13.37 एकड़ भूमि हस्तांतरित करने की मांग की गई थी.
याचिकाकर्ता भगवान श्रीकृष्ण विराजमान ने नेक्स्ट फ्रेंड रंजना अग्निहोत्री के माध्यम से 1974 के एक समझौते के फरमान को यह कहकर रद्द करने की मांग की कि श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह ट्रस्ट के बीच वर्ष 1973 में हुए समझौते के आधार पर जो 1964 में दायर एक पहले के मुकदमे से समझौता किया गया था, कपटपूर्ण था.
वाद में कहा गया कि संबंधित समझौते में, संस्थान ने ट्रस्ट मस्जिद ईदगाह के पक्ष में देवता/ट्रस्ट की संपत्ति को स्वीकार किया था.
2020 के वाद में वादी ने 1974 के उस समझौते और समझौता डिक्री को सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के समक्ष चुनौती दी जिसे सिविल जज ने वाद को दीवानी वाद के रूप में दर्ज नहीं किया और बदले में इस आधार पर मामले को विविध मामले के रूप में दर्ज किया कि वादी संख्या 3 से 8 मथुरा के निवासी नहीं हैं जबकि प्रश्नगत संपत्ति जिला मथुरा में स्थित है.
इसके बाद 30 सितंबर, 2020 को अदालत ने मुकदमे को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के तहत इस आधार पर याचिका को खारिज कर दिया कि वादी को, भगवान कृष्ण के भक्त/उपासक होने के नाते, याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है.
अपील की सुनवाई करते हुए, जिला जज की अदालत ने पहले अपील को एक पुनरीक्षण याचिका के रूप में दर्ज करने का निर्देश दिया और बाद में, उसने 19 मई 2022 को उक्त पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार कर लिया और निचली अदालत को निर्देश दिया कि वह दोनों पक्षों को सुनें और उचित आदेश पारित करें.
26 मई, 2022 को ट्रायल कोर्ट ने सिविल सूट 2022 के मूल सूट संख्या 353 के रूप में दर्ज करते हुए 1 जुलाई, 2022 को लिखित जवाब दाखिल करने के लिए समन जारी किया गया.
यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड इस आदेश के खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट में तत्काल याचिका के माध्यम से जिला जज के आदेश को चुनौती दी. हाईकोर्ट ने अगस्त 2022 में ट्रायल कोर्ट के समक्ष आगे की कार्यवाही पर रोक लगाते हुए दी थी.